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वट सावित्री : तिथि को लेकर सोशल मीडिया में फैला भ्रम, इस तारीख़ को रखे उपवास…

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रायपुर। आज कल हर तीज त्यौहार को लेकर सोशल मीडिया में तिथियों और तारीखों पर अलग अलग संदेश वायरल होते है। वट सावित्री व्रत को लेकर भी कुछ इसी तरह के मैसेज सोशल प्लेटफॉर्म पर जमकर वायरल हो रहे है, जिससे आम लोगों को शंका हो रही है कि कब और कौन सी तिथि में उपवास रखकर पूजन अर्चना की जाए।

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महामाया मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला ने इस शंका का समाधान शास्त्र और पुराणों के आधार पर किया है। पंडित शुक्ला ने कहा कि 29 मई रविवार के दिन इस बार वटसावित्री का त्यौहार मनाया जाएगा। और रविवार को ही क्यो मनाना सही है इसके लिए भी आपकी शंकाओं का समाधान किया जाएगा।

पण्डित मनोज शुक्ला ने कहा कि आम जन मानस यही समझते है कि हर तीज त्यौहार व्रत को उदयातिथि में ही मनाया जाता है। अर्थात जिस तिथि में सूर्योदय होता है उसमें व्रत करना चाहिये ? लेकिन ऐसा नही है जिस समय का जो व्रत होता है, उस तिथि की व्याप्ति देखी जाती है, न कि सूर्य की उदय तिथि। हर व्रत का समय काल अलग अलग होता है।

कई प्रकार के होते है व्रत

पंडित शुक्ला ने बताया कि व्रत कई प्रकार के होते है। जैसे सौरव्रत-सूर्योदय से, चंद्रव्रत-चन्द्र उदय से, प्रदोष कालिक-सूर्यास्त के समय, निशीथ कालिक-मध्य रात्रि में, पर्व कालिक-उत्सव के रूप में वर्ष में 1 बार होते है। इन व्रतों में व्रत की तिथि का संयोग अपेक्षित है।

उदाहरण के तौर पर व्रत पूर्णिमा प्रायः हर बार चतुर्दशी तिथि में ही आता है लेकिन चंद्रोदय के समय पूर्णिमा रहती है। यह चांद्रव्रत है। चंद्रोदय के समय पूर्णिमा होनी चाहिए। सूर्योदय से इस व्रत का कोई मतलब नहीं। इसी तरह गणेश चतुर्थी व्रत प्रायः हर बार तृतीया तिथि में ही आता है। लेकिन चंद्रोदय के समय चतुर्थी ही रहती है। सूर्योदय से इस व्रत का कोई मतलब नहीं है। इसी तरह अन्य व्रत की भी अपनी विशेष तिथि होती है।

अलग अलग राज्यों के स्थानीय पंचाग का अंतर

पंडित मनोज शुक्ल ने बताया कि इन सब के अलावा अलग अलग राज्यों या क्षेत्रों से प्रकाशित होने वाले पंचांगों के कारण भी व्रत त्यौहार 2 दिन होते है। इसका कारण है अक्षांश, रेखांश, देशांतर, बेलान्तर व सूर्य चन्द्र के उदय अस्त समय मे अंतर। इसलिये आप जहाँ के निवासी हैं उस क्षेत्र या स्थान से प्रकाशित पंचांग का अनुसरण ही करना चाहिये। तो किसी भी तरह की शंका कभी नही होगी।

ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को वटसावित्री

मनोज शुक्ला ने बताया कि वटसावित्री व्रत के बारे में निर्णयामृत व भविष्य पुराण आदि धर्मशास्त्रों ने 3 दिन तक व्रत (अर्थात ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी, चतुर्दशी व अमावस्या) करने का विधान बताया गया है। लेकिन लोकाचार के अनुसार छत्तीसगढ़ सहित हमारे देश के अधिकतर भागों में ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को ही इस व्रत को करने की परम्परा है।

तो चतुर्दशी युक्त अमावस्या को रखें व्रत

पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि इस व्रत में यदि अमावस्या दो दिन हो अर्थात प्रथम दिन यदि सूर्योदय के उपरांत 18 घटी से पूर्व अमावस्या लग जाए तो चतुर्दशी तिथि से विद्ध अर्थात चतुर्दशी युक्त अमावस्या में ही व्रत व संबंधित पूजन करना शास्त्रसम्मत है। ऐसा निर्णय सिंधु में वर्णित है।

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श्री काशी विश्वनाथ पंचांग, श्रीदेव पंचांग तथा धर्मसिन्धु आदि के अनुसार यह व्रत 29 मई रविवार को है। तथा 30 मई सोमवार को सोमवती अमावस्या, स्नान दान – श्राध्द अमावस्या तथा शनिदेव की जयंती है।