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Bhaiyaji Special : सिनेमा की वापसी, दर्शकों की मनसा पर टिका फिल्म उद्योग -समीक्षा

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फ़िल्मी डेस्क /लंबे इंतजार के बाद अंततः सरकार ने 15 अक्टूबर से देश के सभी सिनेमा घरो (Cinema Hall) को खोलने का आदेश पास कर दिया। जिसमें सिर्फ 50% दर्शकों के बैठने की अनुमति एवं कोविड सम्बंधित कुछ निर्धारित रूपरेखा (Guideline) के पालन का निर्देश दिया गया है। भारत में सिनेमा प्रमुख उद्योग एवं रोजगार से लेकर सर्वाधिक कराधन का प्रमुख जरिया है। और भारतीय संस्कृति एवम कला में दशकों से सिनेमा (Cinema Hall) का योगदान महत्वपूर्ण रह चुका है। भारतीय दर्शकों ने भी सिनेमा को सबसे उपयुक्त एवम अभिन्न मनोरंजन के साधन के रूप में चुना है।

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कोविड का सिनेमा पे प्रभाव

कोविड 19 (Covid-19) महामारी के प्रकोप के बाद मार्च 2020 से सबसे ज्यादा नुकशान मैं सिनेमा जगत (Cinema Industries) का भी नाम है। हर शुक्रवार रंग रूप और स्वाद बदलने वाला सिनेमा लगभग 6 महिनो से ठप्प है। पर इन 6 महीनो मै सिनेमा ने अपने स्वरूप रूपी पारदर्शी जल में कई रंग मिलाकर दर्शकों को परोसना चाहे ।

कामयाब होना न होना 15 अक्टूबर के बाद निर्धारित होगा । लॉकडॉन के दौरान एक नया स्वरूप देखने को मिला जो मोबाइल फ़ोन ओर स्मार्ट टेलीविजन में छाया रहा। ओ टी टी प्लेटफॉर्म्स ने तो रिकॉर्ड तोड़ बढ़त हासिल की है नेटफ्लिक्स, ऐमज़ॉन प्राइम, मैक्स वर्ल्ड जैसे कितने हो ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने लॉकडाउन अवधि में लगभग हर मोबाइल में जगह बना ली है।

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सिनेमा के प्रति लगाओ

कोरोना के साथ रहते रहते बहुत कुछ बदलने लगा है जैसे -जैसे सिनेमा के प्रति हमारा रवैया ओ टी टी प्लेटफ़ॉर्म क्रांति ने सिनेमा के पर्दो को और छोटा कर दिया है। छः महीनो मै किसी भी भारतीय की आदत में बदलाव आना कोई बड़ी बात नही है ऊपर से सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या का मीडिया द्वारा 24 घण्टो के कवरेज ने सिनेमा जगत को आपके मस्तिष्क से दूर ले जा कर खड़ा कर दिया है। नशे का नेक्सस नाश बॉलीवुड की फजीती करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है।

लगभग हर एक मशहूर फिल्मी सितारे का चरित्रहरण सिनेमा जगत (Cinema Hall) में घोर अंधेरे ओर सन्नाटे का इशारा है । कोई भी सितारा अभी के माहौल में चमक कर सामने आएगा ऐसा सोचना भी बेईमानी लग रहा है। फ़िल्म जगत की हस्ती माने जाने वाले निर्माता-निर्देशक इस नकारत्मक पब्लिसिटी के दौर में जोखिम उठाने से भी कतरा रहे है। कई सारी फिल्मों की रिलीज की तारीखों में लगतार बदलाव इसका प्रमाण हैं।

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सिनेमा समाज का अभिन्न अंग

खैर भारत में सिनेमा समाज का अभिन्न अंग बन चुका है यहां तक की दक्षिणी प्रदेशों में तो सिनेमा अनिवार्य आवश्यकता के तौर में गिना जाता है जिससे कहा जा सकता है कि सिनेमा का भविष्य थमा हुआ जरूर है पर पूरी तरह अन्धकारमय नही । बस इस उधोग में लगे कई कलाकारों के भविष्य में सवालिया निशान जरूर मंडरा रहा है ।

अंतिम लाइन में यह कहा जा सकता है कि अभी खतरा टला नही है।सब कुछ निर्भर करता है सिनेमा के दर्शको पर,अब देखना यह होगा कि भारतीय दर्शक जो अब तक डरा सहमा अपने मोबाइल फ़ोन को सिनेमा मान कर चल रहा था वह कितनी हिम्मत के साथ टिकट काउंटर पर खड़ा होकर टिकट खरीदता है।

लेखक – अंकित जैन ( व्यंगकार, समीक्षक )

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