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गणेश प्रतिमा के विसर्जन में पंचक और भद्रा का क्या होता प्रभाव ? जाने नियम…

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रायपुर। गणेश विसर्जन के दिन भद्रा व पंचक आदि को लेकर लोगों के मन में तरह तरह के सवाल उठते है। ऐसे में इन सवालों और भी बल अफवाहों से मिलती है जो आए दिन सोशल मीडिया में उड़ते रहती है। ऐसे में मन में शँका शुरु हो जाती है कि भगवान गणेश जी का विसर्जन आखिर कब किया जाए ?

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इस संबंध में हमने माँ महामाया मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला से विस्तृत जानकारी ली। इस संबंध में उन्होंने धर्म ग्रंथों और पुराणों में उल्लेखित तथ्यों के आधार पर भगवान विघ्नहर्ता के विसर्जन की पूर्ण विधि बताई है।
पंडित मनोज शुक्ला ने कहा कि “पहले तो यह समझ लें कि हर तीज त्योहार एक निश्चित नक्षत्र के आसपास ही पडतें है।

जैसे जन्माष्टमी-रोहणी नक्षत्र, तीजा-हस्त नक्षत्र, श्रावणी कर्म-श्रवण नक्षत्र, गणेश स्थापना में भद्रा, राखी में भद्रा और होली में भद्रा होती ही है। इन त्योहारों की तरह ही हर साल के गणेश विसर्जन / अनंत चतुर्दशी के दिन भद्रा व पंचक अनिवार्य रूप से होता ही है चाहे दिन में पडे या रात में।

क्या है पंचक ?

पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि पंचक का सीधा सा अर्थ है 5 गुणा। पंचक के 5 नक्षत्रो में पूजा, अनुष्ठांन करने से 5 गुना अच्छा व शुभ फल मिलता है। शास्त्रो में पंचक में शुभ कार्यो व धार्मिक क्रिया कलाप के लिय निषेध नही है। बल्कि पंचक में पूजा अनुष्ठान करने शुभ कार्य करने का 5 गुना फल प्राप्त होता है। पुराणों में पंचक काल में शव का अंतिम संस्कार, घर की छत ढालना, दक्षिण दिशा की यात्रा करना, लकडी काटना और पलंग या चारपायी बनाना निषेध किया गया है।

सूर्यास्त के पहले तक करें विसर्जन

पंडित शुक्ला ने कहा कि “19 सितम्बर रविवार को अनन्त चतुर्दशी है। हवन करने के बाद पूरे दिन भर गणेश जी का विसर्जन सूर्यास्त के पहले तक किसी भी समय किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में विद्वानो व ज्योतिषाचार्यो का कथन है कि “भद्रा और पंचक ही केवल विघ्न नहीं हैं। व्यतिपात, कक्रजादि योग, मासदग्ध तिथियाँ, मासशून्य तिथियाँ, ग्रहण आदि अनेक चीजें हैं वो सब भी विघ्न ही हैं।”

लेकिन भगवान गणेश तो विघ्नहर्ता स्वयं हैं इसलिए उन्हें अपने किसी कार्य के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं है। न स्थापना के समय न विसर्जन के समय। विसर्जन के लिए अलग से मुहूर्त देखने की अनिवार्यता नही होती है।

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छत्तीसगढ़ में प्राचीन समय से चली आ रही क्षेत्रीय लोकाचार के अनुसार अनन्त चतुर्दशी को हवन करके उसी दिन या दूसरे दिन पूर्णिमा को दिनभर मूर्ति विसर्जन किया जाता है। इसलिये किसी भी तरह की सुनी सुनाई बातों में आकर आवाहित करके-निवेदन करके बुलाये हुए देव को समय पूर्व विसर्जित कर देना उनका अपमान है।