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सिलबट्टे की तरह तराशी खुद की क़िस्मत, और पद्मशीला बनी पुलिस उपनिरीक्षक

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रायपुर। मेहनत और लगन से अगर कोई काम किया जाए तो उसमे सफलता जरूर मिलेगी। इस लाईन को सच करती हुई कहानी है महाराष्ट्र की पद्मशीला की। सिलबट्टे बना कर बेचने वाली पद्मशीला तिरपुडे ने अपने संघर्ष के दौर में भी अपनी विजयगाथा लिखी। पत्तरों को तराश कर सिलबट्टे बनानी वाली इस महिला ने अपनी किस्मत को भी उतनी ही शिद्द्त से तराशा। प्रेम विवाह के बाद घर की तमाम जिम्मेदारियां, जिंदगी चलाने के लिए पाई पाई कमाने के साथ पढ़ लिखकर अफसर बनने का जूनून ही था जिसने आज महाराष्ट्र पुलिस में पद्मशीला को उपनिरीक्षक के पद तक पहुंचा। इनकी संघर्ष की कहानी सोशल मीडिया पर भी काफी वायरल हुई है।

सूबे के बिलासपुर रेंज के आईजी दीपांशु कब्र ने भी उनकी एक फोटो (PHOTO) ट्वीट कर उनकी कहानी साझा की है। उनकी फोटो (PHOTO) में एक महिला जिसने लाला साड़ी पहनी हुई है और उसके हाथ में बच्चा और सर पर पत्थर के सिलबट्टे रखे है, तो वही दूसरी फोटो (PHOTO)  में वह पुलिस की वर्दी में अपने परिवार के साथ नज़र आ रही है। IPS दीपांशु काबरा ने ट्वीट में लिखा “परिस्थितियाँ आपकी उड़ान नहीं रोक सकती। किस्मत भले आपके माथे पर भारी पत्थर रखे लेकिन उनसे कामयाबी का पुल कैसे बनाना है ये भंडारा, महाराष्ट्र की #पद्मशीला_तिरपुडे से सीखें. पत्थर के सिलबट्टे बनाकर बेचने वाली पद्मशीला ने मेहनत की और MPAC में उत्तीर्ण होकर पुलिस उपनिरीक्षक बनीं।”

दीपांशु ने आगे लिखा ” उनके संघर्षों में पति ने पूरा साथ निभाया। शुरुवाती दिनों में वे पति के साथ मजदूरी करती थीं। आर्थिक तंगी के चलते पति ने ये तय किया कि वे पत्नी को आगे बढ़ाएंगे और पढ़ाई पूरी करवाएंगे। सिलबट्टे और फल बेचते पद्मशीला ने स्नातक पूरा किया और एमपीएससी क्लियर कर आज पुलिस उपनिरीक्षक बनीं।”

 

ग़ौरतलब है कि पद्मशीला तिरपुडे ने भी मीडिया से चर्चा के दौरान बताया “मेरे अतीत और संघर्षों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। हां जिंदगी में बहुत संघर्ष किया है। हालात काफी खराब थे। लव मैरिज की थी। हम नासिक शिफ्ट हो गए थे। यशवंतराव चव्हाण मुक्त विश्वविद्यालय में ग्रेजुएशन के दौरान ही कॉम्पिटिटिव एग्जाम की तैयारी शुरू कर दी थी। साल 2007 से 2009 तक ग्रेजुएशन की। 2012 में मुख्य प्रतियोगी परीक्षा पास की।”