नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को शिवसेना और उसके बागी विधायकों द्वारा दायर याचिकाओं को आखिरकार संविधान पीठ के पास भेज दिया है। अब इस मामलें में प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मामले को पांच न्यायाधीशों की पीठ फ़ैसला करेगी। कोर्ट ने ये भी कहा कि इन याचिकाओं में महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे शामिल हैं। इन मामलों को परसों संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।
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पीठ चुनाव आयोग की कार्यवाही से संबंधित चुनाव चिन्ह के बारे में फैसला करेगी। उद्धव ठाकरे गुट का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने शीर्ष अदालत से शिंदे के दावे पर फैसला लेने से चुनाव आयोग को रोकने की मांग की।
पीठ ने कहा कि संविधान पीठ को अयोग्यता पर कार्यवाही शुरू करने के लिए डिप्टी स्पीकर के अधिकार के संबंध में नबाम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर के मामले में लिए गए निर्णय पर गौर करना होगा। पीठ ने कहा कि अयोग्यता की कार्यवाही शुरू करने के लिए डिप्टी स्पीकर के अधिकार को उजागर करना महत्वपूर्ण है।
तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि बड़ी पीठ को सवालों पर गौर करने की जरूरत है : दसवीं अनुसूची के पैरा 3 को हटाने का क्या प्रभाव है ? स्पीकर की शक्ति का दायरा क्या है ? पार्टी में दरार होने पर चुनाव आयोग की शक्ति का दायरा क्या है ?
शिवसेना के फैसले पर लगी रोक
इधर सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त को उद्धव ठाकरे को राहत देते हुए चुनाव आयोग से कहा था कि वह एकनाथ शिंदे गुट के उस आवेदन पर फैसला नहीं दे, जिसमें उसे असली शिवसेना के रूप में मान्यता देने की मांग की गई है। शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से कहा कि अगर ठाकरे गुट शिंदे गुट की याचिका पर अपने नोटिस का जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगता है तो उसके अनुरोध पर विचार किया जाना चाहिए।
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पीठ ने चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार से कहा, उन्हें हलफनामा दाखिल करने दें। लेकिन क्या आप रोक नहीं सकते.. कोई प्रारंभिक कार्रवाई नहीं की जाए..हम कोई आदेश पारित नहीं कर रहे हैं। दातार ने दलील दी कि दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता की कार्यवाही एक अलग क्षेत्र में संचालित होती है और यह आधिकारिक मान्यता के लिए प्रतिद्वंद्वी गुटों के दावे को तय करने के लिए चुनाव आयोग की शक्ति को प्रभावित नहीं करती है।