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विदेश में निष्पादित मुख्तियारनामा को हाई कोर्ट ने ठहराया वैध, 51 साल तक लड़ा मुकदमा

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बिलासपुर। पिता द्वारा अमेरिका में किए गए मुख्तियारनामा के दम पर संपत्ति पर कब्जा करने बिलासपुर (BILASPUR NEWS) के अग्रवाल परिवार ने अलग-अलग अदालतों में तकरीबन 51 साल तक मुकदमा लड़ा। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता का पिता द्वारा खरीदी गई जमीन का मालिकाना हक देने का निर्देश दिया है। अमेरिका की मिशनरी ने वर्ष 1971 में बिलासपुर स्थित अपने स्वामित्व की जमीन का सेठ बनवारीलाल अग्रवाल को बेच दी थी।

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मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने अपने आदेश में महत्वपूर्ण टिप्पणी भी की है। कोर्ट ने कहा है कि भारत के बाहर निष्पादित मुख्तियारनामा के संबंध (BILASPUR NEWS) में अवधारणा की जा सकती है कि यदि मुख्तियारनामा का निष्पादन धारा 34 नोटरी अधिनियम 1952 की धारा 57 एवं 85 भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 व धारा 33 पंजीकरण अधिनियम के अनुसार अनुप्रमाणित हो जब तक अन्यथा पुख्ता सबूतों से खंडित नहीं किया गया हो, मान्य किया जाएगा। इस व्यवस्था के साथ ही कोर्ट ने विदेश में किए मुख्तियारनामा को सही ठहराते हुए संपत्ति पर कब्जा देने का आदेश जारी किया है।

बिलासपुर में जमीन खरीदी थी

आजादी से पहले 1941 में यूनाइटेड क्रिश्चियन मिशनरी सोसायटी (यूसीएमएस) यूएसए ने बिलासपुर में जमीन खरीदी थी। उक्त जमीन को वर्ष 1971 में सोसायटी ने बिलासपुर निवासी अग्रवाल परिवार को बेच दिया। जमीन की खरीदी बिक्री के एक वर्ष बाद से कानूनी लड़ाई चल रही है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में मामला जबलपुर हाई कोर्ट से स्थानांतरित होने के बाद से ही इसमें सुनवाई हो रही है। बीते दिनों जस्टिस एनके व्यास के सिंगल बेंच में याचिका की सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने एडीजे कोर्ट बिलासपुर के फैसले का पलट दिया है और भारत से बाहर निष्पादित किए गए मुख्तियार को सही ठहराया है।

एडीजे कोर्ट ने वाद को खारिज कर दिया

सोसायटी ने वर्ष 1943 में बिलासपुर (BILASPUR NEWS) में जमीन खरीदी थी। वर्ष 1962 में सोसायटी ने अपना कामकाज समेटा और पदाधिकारी अमेरिका चले गए। जाने से पहले सोसायटी ने स्थानीय संस्था इंडियन चर्च काउंसिल आफ डिसाइपल्स आफ क्राइस्ट को लाइसेंसी के तौर पर भूमि का उपयोग करने की अनुमति दे दी। 17 सितंबर 1971 में यूसीएमएस यूएसए से नोटराइज्ड पावर आफ अटार्नी भारतीय दूतावास के माध्यम से भेजी। इसी मुख्तियारनामा के जरिए उक्त जमीन सेठ बनवारी लाल अग्रवाल को बेच दी। आइसीसीडीसी चर्च द्वारा कब्जा न दिए जाने के कारण वर्ष 1972 में बनवारीलाल अग्रवाल ने बिलासपुर एडीजे कोर्ट में व्यवहार वाद दायर किया। वर्ष 1977 में मामले की सुनवाई के बाद एडीजे कोर्ट ने वाद को खारिज कर दिया।

एडीजे कोर्ट ने सुनवाई के बाद दोबारा वाद को खारिज कर दिया। एडीजे कोर्ट के फैसले को वर्ष 1992 में जबलपुर हाई कोर्ट में दूसरी मर्तबे याचिका दायर करते हुए अपील पेश की। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के गठन के बाद अन्य याचिकाओं के साथ ही यह याचिका भी छग हाई कोर्ट स्थानांतरित किया गया।