spot_img

गांधी जयंती स्पेशल: बापू के आगमन की गवाह राजधानी भी, जैतूसाव मठ की तोड़ी प्रथा

HomeCHHATTISGARHगांधी जयंती स्पेशल: बापू के आगमन की गवाह राजधानी भी, जैतूसाव मठ...

रायपुर। देश 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती (Gandhi Jayanti) मनाएगा। देश के साथ छत्तीसगढ़ में भी महात्मा गांधी ने आंदोलन कर प्रदेश को भारत के नक्शे में अमर कर दिया। प्रदेश की राजधानी रायपुर भी महात्मा गांधी के आगमन की गवाह है। महात्मा गांधी प्रदेश प्रवास पर पहली बार 20 दिसंबर 1920 को और दूसरी बार 22 नवंबर 1933 को आए थे। रायपुर में वे प हली बार जल सत्याग्रह के कारण आए थे। दूसरी बार छुआछूत दूर करने के दौरान गांधी जी की आगमन रायपुर में हुआ था।

यहां आज भी बसते है बापू

रायपुर के खेल मैदान, मठों, लाइब्रेरी और चौक-चौराहे पर बापू बसते हैं। बापू की याद में राजधानी में गांधी चौक है। इसके साथ ही महात्मा गांधी के नाम से वार्ड भी है। इतिहासकारों की माने तो गांधी जी जब दूसरी बार प्रदेश प्रवास में आए थे, तो वे एक सप्ताह बूढ़ापारा स्थित पं. रविशंकर शुक्ल के निवास में रुके थे। वहां से पूरे प्रदेश में मुंगेली, भाटापारा, दुर्ग, बिलासपुर संभाग में कई जगहों में उन्होंने सभा ली थी। उसी का नतीजा है कि छत्तीसगढ़ में गांधी विचारधारा का व्यापक प्रभाव पड़ा।

अंग्रेजों ने टैक्स हटाया

आजादी पूर्व नहरों से पानी निकालने पर अंग्रेजों ने टैक्स लगा दिया था। धमतरी जिले के किसानों ने इसका विरोध किया और जल सत्याग्रह शुरू कर दिया। धमतरी जिले में कंडेल नहर सत्याग्रह चल रहा था। गांधी (Gandhi Jayanti) को बुलाने के लिए उनके राजनीतिक गुरु पं. सुंदरलाल शर्मा कोलकाता गए। पं. सुंदरलाल शर्मा के आगमन पर गांधी जी पहली बार रायपुर पहुंचे। जब सत्याग्रह को समर्थन देने के लिए गांधी जी पहुंचे तो अंग्रेजों ने तुरंत टैक्स को हटा दिया। अंत में गांधी ने जी कंडेल समेत धमतरी शहर में सभा ली।

जैतूसाव मठ से दूर की छुआछूत की प्रथा

महात्मा गांधी (Gandhi Jayanti) छत्तीसगढ़ में दूसरी बार 22 नवंबर, 1933 को राजधानी पहुंचे। इस दौरान वे पुरानी बस्ती स्थित ऐतिहासिक जैतूसाव मठ में रुके। बताया जाता है कि मठ में पहुंचे तो उन्हें पता चला कि यहां के कुएं से दलितों के लिए पानी निकालने की मनाही थी। इस बात को सुनकर गांधी जी ने दलित बच्ची से कुंए से पानी निकलवाया और वहां पर मौजूद लोगों के साथ उस पानी को पीकर छुआछूत और भेदभाव को खत्म किया। तब से मंदिर के दरवाजे सभी वर्ग के लिए खुल गए।