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केंद्रीय कृषि बिल के विरोध में कांग्रेस का पैदल मार्च, राजभवन के सामने दिया धरना

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रायपुर। केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि बिल (Agricultural bill2020) को लेकर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने तगड़ा विरोध किया है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के द्वारा आज कांग्रेस भवन से राजभवन तक पैदल मार्च कर विरोध जताया। पैदल मार्च और राजभवन के सामने धरने के बाद राज्यपाल अनुसुइया उइके को कांग्रेस के प्रतिनिधि मंडल ने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा। इस ज्ञापन में कांग्रेस ने अपनी मांगों को रखते हुए इन बिलों (Agricultural bill2020) को निरस्त करने की मांग रखी है। इस विरोध प्रदर्शन में कांग्रेसी कार्यकर्ता प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव, वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा, शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह, धनेंद्र साहू, अरुण वोरा समेत बड़ी संख्या में कार्यकर्ता राजभवन तक पहुंचे। जहां उन्होंने कृषि बिल (Agricultural bill2020) के विरोध स्वरूप सड़क पर बैठकर धरना प्रदर्शन भी किया। जिसके बाद कांग्रेस का एक प्रतिनिधि मंडल राज भवन के भीतर जाकर राज्यपाल अनुसुइया उइके से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा है।

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ये है कांग्रेस की मांग
अनाज मंडी-सब्जी मंडी को खत्म करने से कृषि उपज खरीद व्यवस्था’ पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। ऐसे में किसानों को न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेग और न ही बाजार भाव के अनुसार फसल की कीमत। इसका जीता जागता उदाहरण भाजपा शासित बिहार है। साल 2006 में यानि अनाज मंडियों को खत्म कर दिया गया। आज बिहार के किसान की हालत बद से बदतर है।

मोदी सरकार का दावा कि अब किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है, पूरी तरह से सफेद झूठ है। आज भी किसान अपनी फसल किसी भी प्रांत में ले जाकर बेच सकता है। परंतु वास्तविक सत्य क्या है ? कृषि सेंसस 2015-16 के मुताबिक देश का 86 प्रतिशत किसान 5 एकड़ से कम भूमि का मालिक है। जमीन की औसत मल्कियत 2 एकड़ या उससे कम है। ऐसे में 86 प्रतिशत किसान अपनी उपज नजदीक अनाज मंडी-सब्जी मंडी के अलावा कहीं और ट्रांसपोट कर न ले जा सकता या बेच सकता है। मंडी प्रणाली नष्ट होते ही सीधा प्रहार स्वाभाविक तौर से किसान पर होगा।

मंडियां खत्म होते ही अनाज-सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों-करोड़ों मजदूरों, आढ़तियों, मुनीम, ढुलाईदारों, ट्रांसपोर्टरों, शेलर आदि की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप खत्म हो जाएगी।

किसान को खेत के नज़दीक अनाज मंडी-सब्जी मंडी में उचित दाम किसान के सामूहिक संगठन तथा मंडी में खरीददारों के आपस के कॉम्पटिशन के आधार पर मिलता है। मंडी में पूर्व निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (डैच्) किसान की फसल के मूल्य निर्धारण का बेंचमार्क है। यही एक उपाय है, जिससे किसान की उपज की सामूहिक तौर से प्राईस डिस्कवरी’ यानि मूल्य निर्धारण हो पाता है। अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था किसान की फसल की सही कीमत, सही वजन व सही बिक्री की गरंटी है। अगर किसान की फसल को मुट्ठीभर कंपनियां मंडी में सामूहिक खरीद की बजाय उसके खेत से खरीदेंगे, तो फिर मूल्य निर्धारण, एमएसपी, वजन व कीमत की सामूहिक मोलभाव की शक्ति खत्म हो जाएगी। क्या फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया साढ़े पंद्रह करोड़ किसानों के खेतों से एमएसपी पर फसल खरीद सकती है ? अगर मुट्ठीभर पूंजीपतियों ने किसान के खेत से खरीदी हुई फसल का एमएसपी नहीं दिया, तो क्या मोदी सरकार एमएसपी की गारंटी देगी ? किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य आखिर मिलेगा कैसे ? स्वाभाविक तौर से इसका नुकसान किसान को होगा।

अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था खत्म होने के साथ ही प्रांतों की आय भी खत्म हो जाएगी। प्रांत मार्केट फीस व ग्रामाण विकास फंड के माध्यम से ग्रामीण अंचल का ढांचागत विकास करते हैं व खेती को प्रोत्साहन देते हैं। उदाहरण के तौर पर पंजाब ने इस गेहूँ सीज़न में 127-45 लाख टन गेहूँ खरीदा। पंजाब को 736 करोड़ रु. मार्केट फीस व इतना ही पैसा ग्रामीण विकास फंड में मिला। आढ़तियों को 613 करोड़ रु. कमीशन मिला। इन सबका भुगतान किसान ने नहीं, बल्कि मंडियों से गेहूँ खरीद करने वाली भारत सरकार की एफसीआई आदि सरकारी एजेंसियों तथा प्राईवेट व्यक्तियों ने किया। मंडी व्यवस्था खत्म होते ही आय का यह स्रोत अपने आप खत्म हो जाएगा।