spot_img

रक्षाबंधन : भगवान कृष्ण ने दिया था द्रौपती को वचन, इंद्राणी ने इंद्र को बांधी थी राखी

HomeCHHATTISGARHरक्षाबंधन : भगवान कृष्ण ने दिया था द्रौपती को वचन, इंद्राणी ने...

रायपुर। श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि के दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। 22 अगस्त रविवार को पड़ रहे इस बार रक्षाबंधन के लिए सबसे अच्‍छी बात यह है कि इस शुभ त्‍योहार पर भद्रा का साया नहीं है। इस बार भद्रा दोष से मुक्‍त रक्षाबंधन पूरे दिन भर मनाया जाएगा। पुरातन संस्कृति के इतिहास मे रक्षाबंधन ऐसा त्योहार है, जिसकी महिमा विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद से लेकर पुराणो मे भरी पड़ी है।

भैयाजी ये भी देखे : नक्सली मुठभेड़ में ITBP के शहीद जवानों को विष्णुदेव साय ने…

रक्षाबंधन को लेकर महामाया मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि ” मूलतः राखी सौहार्द का सूचक तथा शुद्ध भावनाओ का पर्व है। आपने कभी विचार किया है कि रक्षाबंधन क्यो मनाते है ? बस सीधा सा उत्तर जानते है कि भाई बहन का त्यौहार है। लेकिन ऐसा नही है, रक्षाबंधन एक ऐसा बन्धन जिसमे हमे दुनिया के हर बुरे प्रभाव से बचाने की कामना रहती है।”

उन्होंने बताया कि “यह केवल भाई बहनों का त्यौहार मात्र होता तो लोग अपने घर के देवी देवताओं को, पेड़ पौधों को, अपने गाड़ी वाहन आदि को, अपने घर के पालतू जानवरों को, अपने व्यापार व्यवसाय के क्षेत्र में तराजू, कलम व खाता बही में, कोई बहन अपने बच्चों को, कोई देश के सैनिकों को, कोई राजनेताओं को, कोई पुलिसकर्मियों को, कोई साधु संतों को भी रक्षाबंधन नही बांधते।”

उपरोक्त का तात्पर्य यह है कि जीवन मे बन्धन आवश्यक है किसी भी प्रकार के बन्धन में प्यार , दुलार , ममता , आशीर्वाद , कामना आदि का भाव होता है जिसके कारण हम एक पतले से धागे में मन – कर्म और वचन से बन्ध जाते है। रक्षाबंधन एक दूसरे को मानसिक रूप से आश्वस्त करता है।

भारतीय जीवनशैली को चार वर्णो तथा आश्रमो मे बाँटा गया है। जिसके अनुसार ही चारों वर्णो के कार्य व पर्व बटे हुए है। जिस तरह दशहरा क्षत्रिय का तथा दीपावली वैश्य वर्णो का पर्व है, उसी तरह रक्षाबंधन ब्राह्मणो का विशेष पर्व है।
इसलिए हर पूजन- अनुष्ठान मे ब्राह्मणो द्वारा सबसे पहले रक्षासुत्र बाँधे जाते है। परंपरागत आज भी रक्षाबंधन के दिन ब्राह्मण हर घर व दुकानों मे जाकर पूरे दिनभर अपने यजमानों को रक्षा सुत्र बाँधते है।

रक्षाबंधन की ये है पौराणिक कथाएं

0 भगवान वामन व राजा बलि की कथा में रक्षाबंधन

जनमानस मे प्रचलित कथाओ के अनुसार राजा बलि द्वारा अपना सर्वस्व दान कर देने की दयालुता व भक्ति को देख भगवान वामन प्रसन्न हो गये। तथा उन्हें सुतल लोक का राजा बनाकर वरदान माँगने कहा। तो राजा बलि ने भगवान से कहा कि अपने राजमहल के चारो दरवाजे से जब भी आऊँ या जाऊँ तो आपका दर्शन हो।

इस तरह भगवान सुतल लोक मे राजा बलि के राजमहल मे ही रहने लगे। सब स्थिति स्पष्ट होने पर चिंतित लक्ष्मी जी ने देवर्षि नारद जी के कथनानुसार सुतल लोक मे जाकर राजा बलि को राखी बाँधी तथा भगवान को वापस लेकर आयी।

0 इंद्राणी ने इंद्र को बांधी थी राखी

पौराणिक कथाओं मे भी रक्षविधान का वर्णन है। एक बार देवता-दानवो मे युद्ध छिड़ गया । बहुत समय तक युद्ध चला। जब देवता गण कमजोर होने लगे तब देवराज इन्द्र ने देवगुरू बृहस्पति से कुछ उपाय करने कहा।

तब देवगुरू बृहस्पति ने श्रावण पूर्णिमा के दिन विधि विधान से रक्षाविधान का अनुष्ठान कर देवराज इन्द्र की धर्मपत्नी इन्द्राणी के द्वारा इन्द्र के दाहिने हाथ मे रक्षासुत्र बंधवाया था जिससे देवताओं को विजय प्राप्त हुआ ।

भैयाजी ये भी देखे : भाजपा महिला मोर्चा ने थानेदारों को बांधी राखी, लिया बहनों की…

0 भगवान कृष्ण ने दिया था द्रौपती को वचन

द्वापर युग की प्रचलित कथा के अनुसार जब भगवान कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया तो चक्र चलाने के उपक्रम मे भगवान के दाहिने हाथ की उंगली से रक्त निकलने लगा। तब द्रौपदी ने अपने पहनी हुई साडी की पल्लू को फाड़ कर भगवान के हाथों मे बाँधी जिससे रक्त बहना बंद हो गया।

तब भगवान ने प्रेम से पुलकित होकर द्रौपदी को आशीर्वाद दिया कि तुम पर कोई भी विपत्ति नही आने दुँगा ।और हर प्रकार से तुम्हारी रक्षा करुँगा। और जब कौरवो की सभा मे दुशासन ने जब द्रौपदी का चीरहरण करना चाहा तब भगवान ने रक्षा किया।