बनारस। वाराणसी में सुबह 5 बजे से कचौड़ी सब्जी मिलने लगती है। थोड़ी देर हुई तो 6 बजे तक तो दुकानों पर भीड़ जुटने ही लगती है। कुछ दुकानों पर तो लाइन लग जाती है। ये 11 बजे तक चलता है। वहीं 11 बजे तक ही इसलिए क्योंकि इसके बाद समोसा-लौंगलत्ता का मामला बनने लगता है। मतलब बनारसियों (Banarsis) का खाने-पीने का अपना हिसाब-किताब है।
एक ओर जहाँ लोग खाने में कितनी कैलोरी है, सुबह नाश्ते में क्या खाएं-पीए टाइप की चीज पर एक्सपर्ट से बात कर रहे हों, उस समय भी बनारसियों (Banarsis) को पूरा विश्वास है कि सुबह-सुबह भर पेट कचौड़ी-सब्जी-जलेबी मिल जाएगी तो पेट ही नहीं दिल, दिमाग सब पूरा दिन ‘टाइट’ मतलब एक्टिव रहेगा।
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बनारसियों (Banarsis) की कचौड़ी-सब्जी-जलेबी। ये नाम सुनते जैसे इसका स्वाद आकर्षित करने लगता है। दुनिया में ऐसा शायद ही कोई शहर हो जहां के लोग नींद खुलते कचौड़ी, सब्जी और जलेबी खाने के बारे में न सिर्फ़ सोचते हों, बल्कि मौका मिलते ही ‘भिड़ाने’ मतलब खाने निकल जाते हैं।
लंका पर चाची की दुकान हो या रमेश की। कचौड़ी गली की दुकानें हो या फिर मैदागिन-पांडेयपुर की. मतलब दुकानों की अपनी तासीर है। कुछ लोग दुकानों के मसालों पर चर्चा करते हैं तो कुछ लोग बनाने के तरीक़ों पर।
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सुबह 4 बजे से लग जाते हैं काम पर
लंका पर कचौड़ी, सब्जी, जलेबी की दुकान चलाने वाले रमेश कहते हैं, हम लोग 4 बजे भोर से काम पर लग जाते हैं। पहले दुकान की सफाई होती है। सफाई में 1 घंटे से ज्यादा लग जाता है। बर्तन वगैरह एकदम साफ होना चाहिए। क्योंकि मानना है कि पहली कचौड़ी-सब्जी-जलेबी भगवान को चढ़ाते हैं।