कोंटा। आंध्रप्रदेश में बन रहे पोलावरम डैम के बैकवॉटर से छत्तीसगढ़ के कोंटा और 11 गांव के सामने डूबने (KONTA NEWS) का खतरा बढ़ गया है। सर्वे रिपोर्ट और विशेषज्ञों के मुताबिक यह पूरा इलाका पोलावरम प्रोजेक्ट के बैकवॉटर में समा जाएगा। यह तय है। बावजूद इसके 4 हजार से अधिक प्रभावित लोगों के लिए यहां ना अब तक विस्थापन शुरू हुआ है, ना लोगों को भरोसा दिलाया गया है कि पीढ़ियों से बसे परिवारों का कल क्या होगा ?
2022 में कोंटा ने शबरी नदी का उफान देखा था। यह 1980 के बाद बाढ़ का सबसे भीषण रूप था। शहर का 65 फीसदी से अधिक हिस्सा जलमग्न हो गया था। आसपास के 11 गांवों में दर्जनों बस्तियां डूब गई थीं। हफ्तेभर कोंटा अंधेरे में रहा, हाईवे डूब चुका था। सैकड़ों परिवार ढाई-तीन महीने तक बाहर आसरा लिए हुए थे। इस साल भी बरसात की शुरुआत के पहले ही सक्षम लोग किराये की छत (KONTA NEWS) खोजने लगे हैं। जबकि जो लाचार हैं वह ऊंचाई पर कोई कोना तलाश रहे। अब बाढ़ की आशंका और बढ़ गई है, क्योंकि पिछले साल स्पिलवे बनने के बाद पोलावरम के सबसे ऊपरी हिस्से यानी क्रेस्ट-पैरापेट का काम जारी है। तैयारी है कि 2026 तक पोलावरम में भराव शुरू कर दिया जाए। सवाल यह है कि राज्य के उस ओर एक परियोजना से रोशनी फैलाने की तैयारी है, जबकि इस पार छाने वाले अंधेरे की चिंता किसी को नहीं है।
व्यवस्था से जुड़े सवाल जो ढेरों लोगों से बातचीत में सामने आए
आंध्र-तेलंगाना में करीब 275 गांवों का विस्थापन हाे गया या मुआवजा बंट गया है। छत्तीसगढ़ में 12 गांवों के लिए निर्णय लेने में किस बात की देरी हो रही है ? सरकार के आंकड़े गलत क्यों हैं ? सर्वे में प्रभावितों की संख्या 1200 बताई जाती है, 9 गांव गिने गए हैं। जबकि असल प्रभावित आबादी 5 हजार के आसपास है, गांव भी 11 से अधिक हैं।राज्य भी कोर्ट की लड़ाई में उलझे हैं। प्रभावित राज्यों की सक्षम एजेंसियां साथ बैठकर हल क्यों नहीं निकालतीं ?अब तक प्रशासन भी तय नहीं कर पाया है कि पानी कोंटा शहर के किस हिस्से तक आएगा। हर बार अलग-अलग जगहों पर पत्थर लगाए जाते हैं।
बंड बनाने का भरोसा, बनेगा कब यह तय नहीं
पोलावरम संक्षेम समिति से ही जुड़े गोपाल नायडू (KONTA NEWS) कहते हैं कि हर साल नए अफसर आते हैं, पैंट मोड़कर फोटो खिंचवाकर फिर विदा हो जाते हैं। अभी प्रशासन को ही नहीं पता कि पानी कहां तक आएगा। जनप्रतिनिधियों से भरोसा दिया है कि प्रोटेक्शन बंड बनेगा। जिसकी लंबाई करीब 13 किमी, ऊंचाई 30-40 फीट होगी। चार दशक से बन रहा डैम तैयार होने को आ गया। कोंटा के लिए बंड तो रातों-रात नहीं बन सकता। अब तक जगह नहीं तय है, यह बनेगा कब? दूसरे राज्यों में 275 कस्बे-गांवों का निपटारा हो गया तो यहां के लिए इतनी आनाकानी क्यों? हम कई प्रोजेक्ट देख रहे जहां लोग दशकाें से पुनर्वास, मुआवजे के लिए भटक रहे। हमें वो स्थिति नहीं चाहिए, मैं नहीं चाहता कि हमारे बाद हमारे बच्चे कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते रहें। सरकार को अपनी नीति स्पष्ट करनी चाहिए।
जमापूंजी के साथ 800 से ज्यादा पीएम आवास पानी में समाएंगे
कोंटा के ही युवा पूर्णचंद्र नायडू कहते हैं कि शहर में 80 फीसदी मकान पक्के हैं। 2017 के बाद से करीब 800 तो पीएम आवास बने हैं। केंद्र ने तो इनके लिए 2.50 लाख ही दिए लेकिन लोगों ने अपनी गाढ़ी कमाई की पाई-पाई घर सजाने में लगा दी। अब केंद्र या राज्य कहेंगे कि यह घर छोड़ना है। इस नुकसान का आंकलन कैसे होगा ?