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निकोबार की पारंपरिक झोपड़ियों को मिल सकता है जीआई टैग

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पोर्ट ब्लेयर। अंडमान निकोबार की पारंपरिक होदी (HODI) को जीआई टैग मिलने के बाद अब निकोबार में हेलमेट के आकार की पारंपरिक रूप से बनाई जाने वाली झोपड़ियों को भी जल्द यह पहचान मिल सकती है।

आदिवासी विकास परिषद के अध्यक्ष राशिद यूसुफ ने कहा कि हम इसे ‘चन्वी पटी-न्यी हुपुल (निकोबारी झोपड़ी) कहते हैं। इसके जीआई टैग के लिए आवेदन किया गया है, जिससे समुदाय के हितों की रक्षा की जा सके। इनकी प्रतिकृति की ब्रिक्री केंद्र शासित प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों के हस्तशिल्प बाजार में की जाती है।

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उन्होंने कहा कि कुछ पंजीकृत आदिवासी सोसाइटी है और सभी ने निकोबारी झोपड़ी, चटाई और नारियल तेल को जीआई टैग दिलाने की पहल की। जीआई दर्जा मुख्य रूप से एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में तैयार होने वाले किसी कृषि, प्राकृतिक या विनिर्मित उत्पाद (हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) को दिया जाता है।

कैसे बनाई जाती है निकोबारी झोपड़ी

राशिद यूसुफ ने कहा कि निकोबारी झोपड़ी (HODI) को लकड़ी और नारियल के पेड़ के पत्तों से बनाया जाता है और पर्यावरण अनुकूल डिजाइन होने के साथ-साथ इसके भीतर गर्मियों में तापमान अपेक्षाकृत कम होता है। उन्होंने कहा कि ये झोपड़ियां भूकंप रोधी होती हैं।

राशिद यूसुफ ने कहा कि सामान्य झोपड़ियों (HODI) के मुकाबले इनका आधार ऊंचा होता है, ताकि जंगली जानवरों और भारी बारिश से बचाव हो सके। इन झोपड़ियों का आकार उल्टे हेलमेट की तरह होता है और इनका व्यास 18 से 20 फुट और ऊंचाई 15 से 18 फुट के बीच होती है।