मानपुर। छत्तीसगढ़ को भगवान राम का ननिहाल कहा गया है। इसका ज़िक्र पुराणों और ग्रंथों में भी मिलता है। सरकार भी इस बात को मानती है और सूबे में भगवान श्रीराम के चले हुए रास्तों को टूरिस्ट स्पॉट के बतौर सवारनें का भी काम किया जा रहा है।
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बावजूद इसके सरकारी हुक्मरानों के सायें में दशानन रावण को शहीद बताया जा रहा है, उनके जयकारे लगाए जा रहे है और राम के नाम पर उन्हें आज ललकारा जा रहा है। बताते है ये आयोजन पहली दफा नहीं हुआ है बल्कि कई दशकों से यहाँ रावण और उसके पुरे परिवार की शहीद बताकर उन्हें पूजने की परंपरा रही है। ख़ास बात ये है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नंदकुमार बघेल भी इस शामिल होते रहे है, इस बार स्वास्थ्यगत कारणों से वे इस कार्यकलराम में शामिल नहीं हो पाए है।
दरअसल राजनांदगांव जिले के मानपुर इलाके में आदिवासियों के बीच अंबेकराइट पार्टी ऑफ इंडिया के प्रेसीडेंट विजय मानकर पहुंचे थे। उन्होंने सार्वजानिक मंच से भाजपा और आरएसएस को चुनौती देते हुए कहा कि “मई आधुनिक युग का रावण बोल रहा हूँ, बीजेपी और आरएसएस अपने राम को लाए और मेरे सामने खड़ा करें।”
29 अक्टूबर को “पुरखा के सुरता” नामक आयोजन में उन्होंने राम-रावण के इतिहास पर ही सवाल उठा दिए। उन्होंने कहा कि “राम का इतिहास तीन हज़ार साल पुराना बताते है जबकि गोंडवाना और आदिवासियों का इतिहास 50 हज़ार साल पुराना है।”
देखिए विजय मानकर का संबोधन…
रावण सहित असुरों के वध पर रोक
सर्वआदिवासी समाज के बैनर तले हर साल आदिवासी रावण, राजाबलि, महिषासुर और मेघनाथ सहित असुरों की पूजा करते है। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव समेत आदिवासी अंचलों में रावण दहन के खिलाफ भी आवाजें उठती रही हैं। इस बार भी दशहरे के बाद मानपुर में आस पास के ग्रामीण तकरीबन आठ से दस हज़ार की संख्या में इक्कट्ठे होते है। आदिवासियों की एक बैठक में पहले ही ये तय किया गया था कि आदिवासियों की परंपरा के मुताबिक रावण सहित अन्य असुरों का वध न किया जाए।
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नहीं होता रावण का दहन
मानपुर में आदिवासियों ने आसपास के सौ से ज़्यादा गाँवों में रावण दहन के आयोजन पर रोक लगाने और ऐसे कार्यक्रमों में शामिल नहीं होने का फरमान पहले ही ज़ारी हो चूका है। जिसकी वज़ह से समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसे आयोजनों से काफी दूर रहता है इतना ही नहीं बल्कि इनसे किसी भी तरह का कोई सहयोग भी नहीं मिलता।
रावण को मानते हैं पुरखा
आदिवासी राजा रावण को अपना पुरखा मानते हैं और इसी के चलते रावण दहन का आदिवासियों ने विरोध शुरू किया है। आदिवासियों ने महिषासुर वध को भी अपनी परंपरा के अनुसार गलत बताते हुए राजा बलि, मेघनाथ, राजकुमारी होलिका, राजा हिरण्यकश्यप की पूजा अर्चना भी पिछले दशक से शुरू कर दी थी।