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दशहरा विशेष : श्रीराम ने माँ दुर्गा की पूजा कर किया था शस्त्रपूजन, तब मिली थी रावण पर विजय

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रायपुर। दशहरा का पर्व पूरी तरह से राम व रावण पर ही आधारित है। आश्विन शुक्ल दसमी लंकापति रावण के परांगमुख होने का दिन है। रावण के कार्यो से उस समय देवता,ऋषि-मुनि व मानव सभी त्रस्त हो गए थे। तब से लेकर आज तक प्रतीकात्मक रूप से दशहरे पर रावण दहन किया जाता है। आइए आपको विजयदशमी से जुड़े कुछ पौराणिक मान्यताओं की जानकारी देते है…

           पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि धर्म शास्त्रो के अनुसार भगवान श्रीराम चन्द्र जी ने आसुरी शक्ति के उच्छेदन के लिये शक्ति संचय हेतु नवरात्र देवी पूजन कर अपराजिता या विजया देवी का पूजन किया था इसलिये इसे विजयादशमी भी कहते है।
             ज्योतिष के मुहूर्त व संहिता ग्रन्थो में आया है कि दशहरे के दिन अपने कुल परम्परा के आयुध,कार्योपयोगी यन्त्र-साधनो की तथा अपने वाहनों की विधि विधान से पूजन करना चाहिए। नवीन वस्त्र आभूषण धारण करना चाहिए।
शस्त्र पूजा का महत्व
0 दशहरे के दिन शस्त्र पूजा के सम्बन्ध में कई कथाएँ है। भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिये शक्ति की देवी दुर्गा सहित शस्त्रो की पूजा किया था। राम क्षत्रिय थे इसलिये दशहरे के दिन क्षत्रिय विशेष कर इस पर्व को मनाते है।
0 देवराज इंद्र ने दशहरे के दिन ही असुरों पर विजय प्राप्त किया था।
0 इसी दिन पांडव अपने अज्ञात वास के पश्चात वापस पांचाल आये थे जहाँ पर अर्जुन ने धनुर्विद्या की निपूर्णता के आधार पर स्वयंबर में द्रोपती को जीता था।
0 राजा विक्रमादित्य , दशहरे के दिन ही देवी हरसिद्धि की पूजा आराधना किये थे।
0 छत्रपति शिवाजी ने इसी दिन माँ दुर्गा जी को प्रसन्न करके तलवार प्राप्त किया था।( जिसे भवानी के नाम से जाना जाता है )तब से महाराष्ट्र में शस्त्र पूजा आज भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। ये सभी घटनाएँ शस्त्र पूजा की परम्परा से सम्बंधित है।
नीलकण्ठ दर्शन
दशहरे पर नीलकंठ दर्शन का अलग ही महत्व है। इसके पीछे एक कथा प्रचलित है। इसकी जानकारी देते हुए पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि एक बार महाराजा मान्धाता त्रैलोक्य प्रसिद्ध महायज्ञ कर रहे थे। समस्त देवगण प्रत्यक्ष रूप से वहाँ उपस्थित थे। इसी बीच राक्षस राज रावण के पुष्पक विमान को वहाँ आते देखकर उनके द्वारा अपमान कर देने के डर से सभी देवता गण विभिन्न पक्षियों का रूप बना लिये। भगवान शंकर को डर तो नही था लेकिन सभी देवताओ को साथ देने के चलते वे भी एक पक्षी बन गए जो नीलकण्ठ के नाम से जाना जाने लगा। भगवान ने नीलकण्ठ को वरदान दिया कि लोग तुझे मंगलकारी मानकर दर्शन करेंगें। शकुन शास्त्र में दशहरा ही नही बल्कि हर शुभ कार्य में नीलकण्ठ का दर्शन मंगलकारी बताया गया है।
पेड़ पोधो का सम्मान व पूजन
महाभारत में अज्ञातवास के समय पांडवों ने घने पत्तो वाले खेजड़ी(शमी) के पेड़ पर अपने सभी शस्त्र छुपा कर रखे थे। इसलिये शमी को बहुत ही पवित्र और गुणदायक माना जाता है।
धर्म सिंधु व निर्णय सिंधु जैसे सर्वमान्य ग्रन्थ तथा अथर्व वेद में तो शमी वृक्ष के पूजन का वर्णन दिया है।
आधुनिक भूवैज्ञानिकों द्वारा शोध से यह पता चला है कि यह वृक्ष भूमिगत हलचलों की भविष्य वाणी में सहयोग करने की दृष्टी से बहुत महत्त्वपूर्ण है। राजस्थान में इस पेड़ की रक्षा के लिये अमृतादेवी के साथ सैकड़ो लोगो के बलिदान का इतिहास जुड़ा हुआ है। दरकागल जैसे विषय ग्रन्थ तथा स्कंदपुराण में तो शमी पेड़ के पूजा का मन्त्र भी दिया गया है।
“शमी शमयते पापम् शमी शत्रु विनाशिनी।
धरियर्जुनबाणानाम् रामस्य प्रियवादिनी।।
करिष्यमाणाम् या यात्रा यथाकालम् सुखम् मया।
तत्र निर्विघ्नकर्त्री त्वम् भव श्रीरामपुजिते ।।”
दशहरा एक रूप अनेक
भारत देश के अलग अलग राज़्यों व क्षेत्रों में दशहरे का स्वरूप भिन्न है। छत्तीसगढ़ में 9 दिन तक माँ दुर्गा के पूजन कर 10वें दिन रावण की वृहदाकार पुतला बनाकर राम लीला का मंचन करके रावण को जलाने की परम्परा है।
                     छत्तीसगढ़ के बस्तर की दशहरा में रावण वध नही बल्कि बस्तर की अधिष्ठात्री देवी दन्तेश्वरी माई की आराधना पूजन कर विशाल शोभा यात्रा निकाली जाती है। अलग अलग 12 रस्मों को लेकर मनाया जाने वाला देश ही नही बल्कि पुरे विश्व का एक मात्र पर्व है जो 75 दिनो तक चलता है।
                    हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में दशहरा को देवताओं के मिलन का मेला मानकर मनाया जाता है। यहाँ 7 दिनों का दशहरा त्यौहार मनाया जाता है।
                     दक्षिण भारत में कर्नाटक मैसूर का दशहरा अपनी भव्यता व तड़क भड़क के लिये विश्व प्रसिद्ध है। 15वी शताब्दी के राजा कृष्ण देव राय ने इस उत्सव को राजकीय संरक्षण दिया था।
                   तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में 9 दिनों तक माँ दुर्गा,लक्ष्मी व सरस्वती का पूजन किया जाता है। यहाँ रावण दहन नही किया जाता ।
                   प.बंगाल ,असम व उड़ीसा में दशहरा 4-5 दिनों तक चलने वाला प्रमुख त्यौहार है। यहाँ की स्त्रियाँ देवी के मस्तक पर सिंदूर लगाकर आपस में सिंदूर खेलती है। यहाँ दुर्गा पूजन का बहुत अधिक महत्त्व है।
                  महाराष्ट्र में दशहरे पर भाई चारे के प्रतीक के रूप में आपटा पेड़ के पत्तियों को सोनपत्ति मान कर बाँटने की प्रथा है। इसकी शुरुआत बिंबा जी राव भोंसले ने किया था।
                   कोटा राजस्थान की दशहरा 500 सालों से हड़ोती में खास ढंग से मनाया जाता है। 25 दिनों तक चलने वाला यह उत्तर भारत का यह सबसे प्राचीन दशहरा माना जाता है।