वॉशिंगटन। अमरीकी वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया के नामकरण (NOMENCLATURE OF BACTERIA) के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग आधारित नई प्रणाली ‘सीक-कोड’ तैयार की है। इससे बैक्टीरिया के नामकरण की 300 साल पुरानी प्रणाली बदल गई है। इससे इन सूक्ष्म जीवों को जानना आसान होगा। नई पीढ़ी के एंटीबायोटिक्स की पहचान से लेकर कैंसर के इलाज की खोज में भी मदद मिल सकती है।
2022 में इसे सीक-कोड के रूप में अपनाया
बैक्टीरिया के नामकरण की नई प्रणाली के लिए 2018 में अमरीका में नेशनल साइंस फाउंडेशन (NOMENCLATURE OF BACTERIA) के सहयोग से पहल की गई थी। लंबी चर्चा के बाद सितंबर 2022 में इसे सीक-कोड के रूप में अपनाया गया। इस प्रणाली के बाद शुद्ध कल्चर वाले बैक्टीरिया के नामकरण की पुरानी प्रणाली भी चलती रहेगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि बैक्टीरिया की प्रभावी, औपचारिक और स्थाई नामकरण प्रणाली से पृथ्वी पर सूक्ष्म जीवों की विविधता का पता लगाने में ज्यादा मदद मिलेगी।
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नाम दो हिस्सों में रखे जाते हैं
स्वीडन (NOMENCLATURE OF BACTERIA) के वनस्पति वैज्ञानिक कार्ल लिनेस ने 1737 में तार्किक बाई-नॉमिअल (द्विपद) प्रणाली पेश की थी। इसमें सभी जीवों, पेड़-पौधों आदि के नाम दो हिस्सों में रखे जाते हैं। पहला हिस्सा उनका जीन्स होता है, जो सरनेम की तरह काम आता है। दूसरा हिस्सा उस प्रजाति की विशेषता बताता है। इस मेल से लगभग सभी सूक्षम जीवों को विशिष्ट नाम मिलना संभव हुआ। जैसे मनुष्य होमो सेपियन कहलाए।
इस प्रणाली के जरिए बैक्टीरिया की किसी प्रजाति को लैब में पैदा कर उसका अध्ययन करने के बजाय वैज्ञानिक उसकी डीएनए सीक्वेंसिंग का सहारा लेंगे। उन्हें सूक्ष्म जीव का जीनोम हासिल होगा, जो डीएनए का ब्लूप्रिंट होता है। सीक्वेंसिंग के डेटा से किसी खास प्रजाति की अन्य प्रजाति से अलग पहचान में मदद मिलेगी।