रायपुर। पूर्व मंत्री व विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने हसदेव अरण्य पर प्रेस वार्ता लेकर सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि “भूपेश सरकार अपने नेता सोनिया गांधी और अपने बड़े भाई अशोक गहलोत को खुश करने के लिए छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़िया के हितों की बलि दे रहे हैं।”
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उन्होंने पूछा कि “भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ की जनता को बताएं जो प्रोजेक्ट 3 वर्षों से रुका हुआ था, आखिर किसके दबाव में मात्र 3 महीनों में उसे स्वीकृति दे दी। बृजमोहन अग्रवाल ने कहा नियम कायदे और कानून कहते हैं कि राज्य सरकार अगर पर्यावरण मंजूरी ना दें और राज्य सरकार ना चाहे तो कोई भी उनके क्षेत्र में खनन नहीं कर सकता।
विधायक बृजमोहन ने कहा कि कांग्रेसी निजी हित में जनता को बरगलाना बंद करें। उन्होंने कहा कि शायद भूपेश बघेल जी भूल गए हैं कि विधानसभा चुनाव के पहले 2018 में राहुल गांधी हसदेव आकर यहां के जंगल, यहां की संस्कृति और यहां की पेड़ नहीं कटने देने का वादा करके गए थे।
अग्रवाल ने कहा कि कांग्रेस अब जनता को स्पष्ट करें कि “हरदेव अरण्य मामले में यदि राहुल जी सही है तो, भूपेश बघेल को बर्खास्त करें, भूपेश जी सही हैं तो अपने स्वास्थ्य मंत्री को बर्खास्त करें और अगर स्वास्थ्य मंत्री जी सही हैं तो जनहित मे मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर सड़क की लड़ाई लड़े।”
वैकल्पिक ऊर्जा की तरफ नहीं दिया ध्यान
विधायक बृजमोहन ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कोरी बयानबाजी से बचने की नसीहत देते हुए कहा कि भूपेश बघेल बताएं कि विगत 3 वर्षों में उन्होंने छत्तीसगढ़ में कितने वृक्ष लगाए हैं जो हसदेव जैसे सघन वन क्षेत्र कटने पर वृक्ष लगाने की बात कहते हैं। जब से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार आई है उन्होंने वैकल्पिक ऊर्जा की तरफ कभी ध्यान ही नहीं दिया है।
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भाजपा शासन में 5 लाख से अधिक सोलर पंप बांटे, इन्होंने क्या काम किया है यह स्पष्ट करें। इनको कमीशन के अलावा कुछ नहीं दिखता। उन्होंने कहा कि हम यह नहीं कहते कि कोयले की आवश्यकता नहीं है परंतु इसके लिए इस सघन वन को काटने के अपेक्षा क्षेत्र परिवर्तित किया जा सकता है।
भाजपा है आदिवासियों के साथ
भाजपा नेता बृजमोहन अग्रवाल ने कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि अपने स्वार्थ, अपने हित और अपनी कुर्सी बचाने के लिए यह सरकार घने जंगल को, वहां के आदिवासियों को, आदिवासी संस्कृति को समाप्त करना चाहती है। उन्होंने विश्वास दिलाया कि भारतीय जनता पार्टी जंगल में रहने वाले वनवासी, आदिवासी, रहवासी और प्रभावितों के साथ है।