बिलासपुर। हाई कोर्ट (BILASPUR NEWS) ने अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासियों को उनका हक दिलाने पेश जनहित याचिका में शासन को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब मांगा है। अखिल भारतीय जंगल आंदोलन मंच के छत्तीसगढ़ संयोजक देवजीत नंदी ने अधिवक्ता रजनी सोरेन के माध्यम से अनुसूचित जनजाति एवं परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 एवं संशोधित अधिनियम 2013 के अंतर्गत धारा 3(1) (ई) के हेबिटोट राइट्स को लेकर हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है।
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इसमें कहा गया कि वनों के संरक्षण, संवर्धन एवं पर्यावरणी जलवायु परिवर्तन को बचाए रखने में विशेष संरक्षित व वंचित समुदाय का ऐतिहासिक योगदान है। समुदाय आदिकाल से वनों पर निर्भर है। वन्य प्राणी और विशेष संरक्षित खाद्य पदार्थों, जीव के साथ रहवास होने के कारण इको सिस्टम की जानकारी रखते हैं। इन विशेष संरक्षित समुदाय जिन्हें राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र भी कहा जाता है।
इन्हें वन्य प्राणियों (BILASPUR NEWS) के संरक्षण के नाम पर राज्य के विभिन्न् अभयारण्य व राष्ट्रीय उद्यानों अचानकमार टाइगर रिजर्व, भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य, बारनवापारा वन्यजीव अभयारण्य, उदंती सीतानदी वन्यजीव, बादलखोल अभयारण्य से विस्थापित किया जा रहा है। समुदाय विशेष भौगोलिक परिस्थितियों में निवास करते हैं। आजीविका के लिए वनों पर निर्भर रहते हैं।
छह सप्ताह में जवाब मांगा
इनके लिए इस कानून (BILASPUR NEWS) में विशेष प्रविधान किए गए हैं, जिसका क्रियान्वयन आज तक इनके हक सुनिश्चित नहीं किया गया है। समुदाय ने अपने हक के लिए दावा भी किया है। याचिका में चीफ जस्टिस अरुप कुमार गोस्वामी की युगलपीठ ने राज्य शासन, 17 जिला स्तरीय समिति के अध्यक्ष कलेक्टर, सचिव आदिम जाति कल्याण विभाग, सचिव वन एवं पर्यावरण विभाग नई दिल्ली को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब मांगा है।