नई दिल्ली। नीति आयोग (NITI Aayog) भारत सरकार का एक प्रमुख नीतिगत ‘थिंक-टैंक’ है तथा वह “वॉट गेट्स मेजर्ड, गेट्स डन,” यानी “जो मापा गया, समझो पूरा हुआ” के मूलमंत्र में विश्वास करता है। सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद के अंग के रूप में नीति आयोग और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय मिलकर राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को लगातार प्रेरित करते हैं कि वे स्वास्थ्य नतीजों में सुधार करते रहें।
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वर्ष 2017 में नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांस्फार्मिंग इंडिया ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और विश्व बैंक के साथ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्वास्थ्य के बारे में आमूल कामकाज तथा क्रमिक प्रदर्शन की ट्रैकिंग के लिये वार्षिक स्वास्थ्य सूचकांक की शुरूआत की थी। वार्षिक स्वास्थ्य सूचकांक का उद्देश्य है स्वास्थ्य नतीजों की प्रगति और स्वास्थ्य प्रणालियों के कामकाज को ट्रैक करना, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का विकास करना, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को एक-दूसरे से सीखने के लिये प्रोत्साहित करना।
राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के लिये स्वास्थ्य सूचकांक अंक और रैंकिंग का मूल्यांकन क्रमिक प्रदर्शन (वर्ष प्रति वर्ष प्रगति) तथा आमूल कामकाज (मौजूदा कामकाज) के आधार पर किया जाता है। आशा की जाती है कि इस प्रक्रिया से स्वास्थ्य सम्बंधी सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रयासों को बल मिलेगा। इसमें यूनीवर्सल हेल्थ कवरेज (आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुंच) और अन्य स्वास्थ्य नतीजों को भी शामिल किया गया है।
स्वास्थ्य सूचकांक एक ऐसा पैमाना है, जिसमें 24 संकेतकों को शामिल किया गया है, जो स्वास्थ्य क्षेत्र में कामकाज के सभी प्रमुख पक्षों से जुड़ा है। इस रिपोर्ट के दायरे में स्वास्थ्य नतीजे, शासन और सूचना तथा प्रमुख नतीजे और प्रक्रियायें आती हैं। इन स्वास्थ्य सूचकांक रिपोर्टों का उद्देश्य है कि मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली तथा सेवा आपूर्ति में सुधार के लिये राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को प्रेरित किया जाये।
इस वार्षिक प्रक्रिया के महत्त्व पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने जोर देते हुये स्वास्थ्य सूचकांक को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत मिलने वाले प्रोत्साहन से जोड़ने का फैसला किया है। रिपोर्ट द्वारा कोशिश की गई है कि बजट राशि को खर्च करने, आगत और निर्गत की बजाय नतीजों पर ज्यादा ध्यान दिया जाये।
मजबूत और स्वीकार्य प्रणाली को कामकाज को मापने के लिये इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत संकेतकों की मंजूरी और आंकड़ों को जमा करने की प्रक्रिया पूरी की जाती है। यह काम नीति आयोग द्वारा संचालित एक पोर्टल के माध्यम से होता है।
यह प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद उसे एक प्रमाणन एजेंसी द्वारा सत्यापित कराया जाता है। प्रमाणन एजेंसी का चयन पारदर्शी बोली प्रक्रिया से किया जाता है। इसके बाद सत्यापित दस्तावेजों को आगे सत्यापन के लिये राज्यों के साथ साझा किया जाता। अंत में आंकड़ों को अंतिम रूप दिया जाता है। इन आंकड़ों का उपयोग विश्लेषण और रिपोर्ट लेखन के लिये होता है।
स्वास्थ्य सूचकांक राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के आमूल कामकाज और क्रमिक प्रदर्शन को मापने तथा उनकी तुलना करने का एक उपयोगी माध्यम है। वह स्वास्थ्य नतीजों, शासन, आंकड़ों की सत्यता तथा प्रमुख आगत और प्रक्रियाओं सहित विभिन्न मापदंडों के संदर्भ में कामकाज के उतार-चढ़ाव को समझने का भी एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। इसके जरिये कामकाज की निगरानी करने के बारे में राज्य/केंद्र शासित प्रदेश स्तर पर आंकड़ों के इस्तेमाल की संस्कृति को मजबूती मिली है।
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इसके साथ इसके जरिये ज्यादातर राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में आंकड़ों की उपलब्धता, गुणवत्ता और सामयिकता में सुधार लाने की दिशा में भी योगदान हो रहा है। इस रिपोर्ट के माध्यम से राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के वार्षिक कामकाज की निगरानी सरकार के उच्चतम स्तर पर होती है। वित्त वर्ष 2019-20 के लिये रिपोर्ट 27 दिसंबर, 2021 को दोपहर बारह बजे जारी की जायेगी।