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LAC में तनावपूर्ण हालात के बीच मोदी-जिनपिंग होंगे आमने-सामने

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दिल्ली. गलवान हिंसा के बाद से LAC में तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है। चीन और भारत के सैन्य अधिकारी बात-चीत के बाद भी इस तनाव को खत्म नहीं कर पा रहे है। ऐसे माहौल में भारत के पीएम नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात अगले महीने होने वाली है।

कोरोना काल के चलते यह मुलाकात वर्चुअल होगी। दोनो देशों के नेता 17 नवंबर को ब्रिक्स समिट में बात-चीत कर सकते है चीन के राष्ट्रपति कहते रहे हैं कि उनका देश क्षेत्र में युद्ध नहीं चाहता है, पर बॉर्डर के करीब बड़ी संख्या में सैन्य और हथियारों का जमावड़ा कर चीन ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है। इसके जवाब में भारत ने मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सीमा पर फोर्स बढ़ा दिया है और तीन शिफ्टों में पहरा दिया जा रहा है।

ब्रिक्स देशों में चीन और भारत दोनो शामिल

ब्रिक्स देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका हैं। इस बार ब्रिक्स देशों के नेताओं की बैठक का विषय ‘पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल स्टेबिलिटी, शेयर्ड सिक्योरिटी एंड इनोवेटिव ग्रोथ होगा। उधर, विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार यह अलग-अलग देशों का संगठन है और ऐसे समिट में दो पक्षीय बातचीत होने की उम्मीद कम है। लेकिन दोनों देशों के प्रमुखों के एक कार्यक्रम में रहने से एक बड़ा संदेश जा सकता है और पीएम मोदी इशारों में ही मंच से चीन को संदेश दे सकते हैं। पीएम मोदी अब तक कूटनीतिक स्तर पर चीन को सख्त संदेश देते रहे हैं और तमाम मंचों से उसकी विस्तारवादी नीतियों पर आक्रामक प्रहार करते रहे हैं।

कूटनीतिक स्तर पर हो सकती है बातचीत

भारत और चीन के बीच उच्चस्तरीय कूटनीतिक स्तर पर एक और बातचीत हो सकती है। जुलाई में तनाव के बाद एनएसए अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच बातचीत हुई थी। उस बातचीत में LAC का तनाव को कम करने के लिए सहमति बनी थी जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव में कमी जरूर आई लेकिन विवाद बना रहा है।

बातचीत से निकाला जा रहा रास्ता

सूत्रों के अनुसार दोनों देश सर्दी शुरू होने से पहले इस स्तर की बातचीत का एक रास्ता तलाश रहे हैं। अब तक कमांडर स्तर की बातचीत या दूसरे कूटनीतिक स्तर की बातचीत में कोई हल नहीं निकल सका है। 12 अक्टूबर को दोनों देशों की तय वार्ता के बाद इसकी संभावना तलाशी जाएगी। अगर मौजूदा हालात नहीं सुधरे तो सर्दियों में LAC पर दोनों देशों के सेनाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।