नारायणपुर। कांकेर जिले के अंतिम छोर में बसे 58 गांव के आदिवासी ग्रामीण नारायणपुर जिले सम्मिलित होने के लिए बेमियादी हड़ताल (PRADARSHAN) में हैं। प्रदर्शनकारी पिछले 11 दिनों से कपड़े उतारकर हड़ताल कर रहे है। जिला प्रशासन के कानों में प्रदर्शनकारियों की बात नहीं पहुंची, तो इस बात से नाराज होकर 65 आदिवासियों ने अपना सिर मुंडवा कर पारंपरिक हथियार तीर-कमान-टंगिया लेकर कर प्रशासन का ध्यान अपनी और आकर्षित करने का प्रयास किया। प्रशासन ने तो अब तक उनकी सुध नहीं ली पर कांग्रेस व भाजपा के पदाधिकारियों ने आकर उनकी मांग को समथन प्रदान किया।
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2007 से कर रहे मांग
प्रदर्शनकारियों (PRADARSHAN) का कहना है, कि वर्ष 2007 से उनके द्वारा नारायणपुर जिले में शामिल करने की मांग की जा रही है। मांग इसलिए की जा रही है, क्योंकि कांकेर जिला मुख्यालय के उनके गांव से बहुत दूर है, जबकि जिला मुख्यालय बहुत नजदीक है। कांकेर जिला मुख्यालय होने के चलते उन्हें मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है। स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, स्कूल, आंगनबाड़ी जैसे सुविधा भी इन गांवों में सुचारू रुप से संचालित नहीं होते हैं। इसके अलावा आपातकालीन स्थिति और दैनिक उपयोगी कार्यो के लिए भी नारायणपुर जिले पर आश्रित होना पड़ता है।
सीएम-राज्यपाल को मांग पत्र सौंपने की तैयारी
शांतिपूर्ण ढंग से पिछले 11 दिनों से प्रदर्शन (PRADARSHAN) कर रहे प्रदर्शनकारी अब अपनी मांग पूरी कराने के लिए उग्र प्रदर्शन व चक्का जाम करने की बात कह रहे है। वहीं नारायणपुर जिला कांग्रेस जिला भाजपा द्वारा समर्थन मिलने के बाद रावघाट संघर्ष समिति नारायणपुर अब अपनी मांगो को लेकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मिलने की रणनीति बना रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि रावघाट परियोजना के चलते और राजनैतिक नफा नुकसान के चलते ग्रामीणों के धरने पर सरकार द्वारा बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जा रहा है। आदिवासियों का कहना है कि नारायणपुर अबूझमाड़ की संस्कृति और देवी परगना से उनके रीति रिवाज जुड़े हुए हैं।