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वन संरक्षण कानून में संशोधन की तैयारी में केंद्र, किसान सभा ने किया विरोध

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रायपुर। छत्तीसगढ़ किसान सभा ने केंद्र की मोदी सरकार द्वारा वन संरक्षण कानून में संशोधन का विरोध जताया है। इस संशोधन के लिए मसौदा तैयार करने का ठेका कॉर्पोरेट कंपनियों को देने पर भी केंद्र ने तीखी आलोचना की है।

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सभा के पदाधिकारियों ने कहा है कि अब यह सरकार के निजीकरण की शुरूआत है, जो कानून बनाने का काम भी कॉर्पोरेट कंपनियों को सौंप रही है। मोदी सरकार के पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने यह आमंत्रण 22 जून को जारी किया है और इसका मुख्य उद्देश्य ‘वन्य-व्यापार को सुगम बनाना’ है।

छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा है कि “वन और वन संपदा के उपयोग का मामला भारतीय संविधान की समवर्ती सूची का हिस्सा है और यह राज्य के अधिकार क्षेत्र का मामला है। राज्य की स्वीकृति के बिना केंद्र सरकार वन भूमि का अन्य प्रयोजनों के लिए उपयोग तक नहीं कर सकती। इसलिए राज्यों से सलाह-मशविरा किये बिना इस विषय पर कोई भी कानून बनाना संघवाद के खिलाफ होगा।

किसान सभा नेताओं ने कहा कि जिस कॉर्पोरेट क्षेत्र की बुरी नजर इस देश के जल, जंगल, जमीन, खनिज व अन्य प्राकृतिक संपदा पर गड़ी हुई है, उसे ही कानून बनाने के लिए कहा जा रहा है। यह चोरों को ही चौकीदारी का जिम्मा देने के समान है।

वन संरक्षण कानून राज्य का अधिकार

छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने कहा है कि जो लोग और संस्थाएं वनों, वन्य-जीवों और जैव-विविधता के संरक्षण तथा वनों पर निर्भर गरीब समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ रहे है, उन ताकतों को कानून निर्माण की प्रक्रिया से बाहर रखने से ही मोदी सरकार के कॉर्पोरेटपरस्त इरादों का पता चलता है।

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छत्तीसगढ़ किसान सभा ने कहा है कि किसी कानून का मसौदा तैयार करना राज्य का संप्रभु और सार्वभौमिक अधिकार है और यह काम किसी कॉर्पोरेट कंपनी को नहीं सौंपा जा सकता, इसलिए मोदी सरकार अपनी “रूचि की अभिव्यक्ति” के आमंत्रण को तुरंत वापस लें।