दिल्ली। हाल ही में धनबाद के एक जज की हत्या और दिल्ली में कोर्ट परिसरों में गोलीबारी की तीन घटनाओं का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट (SC) ने एक आदेश जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों और राज्य सरकारों को जजों की सुरक्षा उपाय करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि ‘न्यायाधीशों का जीवन, कोर्ट के बाहर भी आजकल पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं।’
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एक साल में गोलीबारी की 3 बड़ी घटनाएं
जस्टिस एस आर भट्ट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने अपने 11 अगस्त के आदेश में कहा, ‘यह भयावह है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अदालत परिसर में, पिछले एक साल में, गोलीबारी की कम से कम तीन बड़ी घटनाएं हुई हैं। अदालत एक ऐसी जगह है जहां न्याय किया जाता है और कानून के शासन को बरकरार रखा जाता है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता। यह महत्वपूर्ण है कि न्यायिक संस्थान सभी हितधारकों की भलाई की रक्षा के लिए व्यापक कदम उठाएं।’
‘सिर्फ कोर्ट में सीसीटीवी लगाना काफी नहीं’
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसआर भट्ट और दीपांकर दत्ता की पीठ (SC) ने कहा कि दिल्ली में अदालत परिसरों में गोलीबारी की घटनाएं ‘चिंताजनक’ हैं। पीठ ने 28 जुलाई, 2021 को धनबाद में एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की हत्या का जिक्र करते हुए बताया की जब वह सुबह की सैर पर थे तो उनकी हत्या कर दी गई थी। पीठ ने कहा, ‘न्यायालय के बाहर, न्यायाधीशों का जीवन भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है।’
कोर्ट ने किया सवाल
अगर न्याय के दरबारों में ही सुरक्षा कवच का अभाव हो तो यहां आने वाले लोगों की उम्मीद कम नहीं होगी? जिन लोगों को न्याय प्रदान करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है वे स्वयं असुरक्षित हैं तो आम जनता अपने लिए न्याय कैसे सुरक्षित कर सकते हैं? ये ऐसे सवाल हैं जो हमें बेहद परेशान करते हैं।’
सुप्रीम कोर्ट ने सुझाए उपाय
पीठ ने कहा कि कोर्ट परिसरों में केवल सीसीटीवी कैमरे लगाना (SC) पर्याप्त नहीं हो सकता है। अदालत परिसरों में न्याय वितरण प्रणाली के सभी हितधारकों की सुरक्षा से समझौता करने वाली गतिविधियों की जांच करने के लिए सार्वजनिक हित में कुछ और करने की आवश्यकता है।
उच्च न्यायालयों द्वारा प्रत्येक राज्य सरकार के प्रमुख सचिवों, गृह विभागों और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस महानिदेशकों के परामर्श से एक सुरक्षा योजना तैयार की जानी चाहिए। जहां भी कोई अदालत परिसर पुलिस आयुक्तालय के अधिकार क्षेत्र में है, पुलिस आयुक्त को राज्य और जिला स्तरों पर समय पर लागू किया जाना चाहिए, जिसमें जिला मुख्यालय और बाहरी क्षेत्रों में अन्य अदालतें भी शामिल हैं।