रायपुर। हसदेव अरण्य (HASDEV) में कोयला खनन के खिलाफ देश भर के 15 से अधिक जन संगठन एकजुट हुए हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने गुरुवार को रायपुर में कहा, हसदेव क्षेत्र में आदिवासी खदान परियोजना का विरोध कर रहे हैं। उस खदान से पर्यावरण का विनाश संभावित है। ऐसे में सरकारें अपने ही वन और पंचायतों से जुड़े कानूनों का सम्मान करें। वहां खनन का आदेश निरस्त हो।
खनन प्रभावित हरिहरपुर में धरना दे रहे ग्रामीणों से मिलकर रायपुर लौटीं मेधा पाटकर ने कहा, जल, जंगल, जमीन अमूल्य है इसे पैसे से मत तौलो। वहां दलाल खड़े मत करो। आंदोलनकारियों को बदनाम मत करो। यह रास्ता लंबा चलता नहीं है। यह नियमगिरी, रायगढ़ से छिंदवाड़ा तक बार-बार देखा गया है। मेधा ने कहा, ऐसे खनन को कैसे मंजूर किया जा सकता है, जिससे प्रकृति आधारित जीवन निर्वाह करने वाले आदिवासी समुदाय का अस्तित्व ही खत्म हो जाए। उन्होंने कहा, कांग्रेस के ही शासनकाल में जनपक्षीय कानून पेसा, वनाधिकार मान्यता कानून और भूमि अधिग्रहण का नया कानून बना। उम्मीद है कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान की कांग्रेस सरकारें भी इन कानूनों का पालन सुनिश्चित करेंगी। हम सरकार से हसदेव में भी ऐसी रायशुमारी की मांग करते हैं।
फर्जी ग्राम सभा प्रस्तावों की जांच कराए सरकार
मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम (HASDEV) ने कहा, हसदेव अरण्य क्षेत्र की ग्राम सभाओं ने कभी भी खनन परियोजनाओं को मंजूरी नहीं दी। परसा कोल ब्लॉक के लिए ग्राम सभा के एक फर्जी प्रस्ताव के आधार पर स्वीकृति हासिल की गई है। इसकी जांच कराई जानी चाहिए। देश भर में कई उदाहरण हैं जहां ग्राम सभा के अधिकार को सर्वोच्च मानकर न्यायालय ने ऐसी परियोजनाओं को रद्द किया है।
राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग
मेधा पाटकर सहित कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मामले में राज्यपाल से हस्तक्षेप (HASDEV) की मांग की है। उन्होंने कहा, पांचवी अनुसूची के तहत ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के लिए राज्यपाल को तमाम अधिकार दिए गए हैं। उन्हें उन अधिकारों का प्रयोग कर ग्रामीणों को न्याय दिलाना चाहिए।