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Exclusive : देसी नस्ल के खोजी कुत्तों का कारनामा, साल भर में ढूंढे 140 IED

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जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में लगातार IED ब्लास्ट की घटनाओं में कमी आई है। इन घटनाओं में लगाम लगाने के लिए सबसे बड़े शस्त्र के रूप में सामने आए है सूबे के डॉग स्क्वॉड (Dog Squad)।

जो 20 फिट दूर से भी IED और प्रेशर बम का पता लगाने में माहिर है। डॉग स्क्वॉड (Dog Squad) में भी देशी नस्ल के कुत्तों की भूमिका और भी ज़्यादा ख़ास है।

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बस्तर के डॉग स्क्वॉड के बुधारू, ओमू, बैजू और भूरी अपनी पूरी मुस्तैदी के साथ जंगलों में नक्सलियों के मंसूबो पर पानी फेरने में सबसे आगे रहते है।

ये सभी जिले के घने जंगलों में माओवादियों द्वारा सड़कों और जंगलों के भीतर दफ़न IED और विस्फोटकों को खोज निकालने में पूरी फुर्ती और एहतिहात के साथ काम करते है।

Dog Squad
Dog Squad

साथ ही सर्चिंग के लिए जवानों की टीम को सुरक्षित और बेहतर रास्ते पर आगे बढ़ाते है। जवानों की तरह इनकी भी बेहद कड़ी ट्रेनिंग होती है।

बस्तर के कांकेर जिले में स्थित काउंटर टेररिज्म एंड जंगल वारफेयर कॉलेज में इनकी नौ महीने तक ट्रेनिंग होती है। जिसके बाद इन्हे तैनात सुरक्षा बलों के साथ विस्फोटक का पता लगाने तैनात किया जाता है।

हर साल 140 IED डिफ्यूज

बस्तर के जोखिम भरे रास्तों में देसी नस्ल के स्निफर डॉग (Dog Squad) बेहद अहम किरदार निभा रहे है। ये 20 फीट दूर से भी आईईडी का पता सूंघ कर लगा लेते हैं।

विदेशी नस्ल के साथ साथ देशी नस्ल के स्निफर डॉग भी आईईडी का पता लगाने में पूरी तरह सक्षम हैं। पुलिस सूत्रों की माने तो ये स्निफर डॉग हर साल औसतन 140 से अधिक आईईडी का पता लगाते हैं। जिससे कई जवानों और ग्रामीणों की जान बचती है।

ये है देसी नस्ल की खासियत

जानकारों की माने तो डॉग स्क्वॉड (Dog Squad) में स्ट्रीट डॉग्स घने जंगलों, माओवादी ठिकानों, पहाड़ी और दुर्गम इलाके में भी बड़ी आसानी से पहुंचते है। जो पुलिस के लिए बेहद अहम है। दरअसल देसी नस्ल के खोजी कुत्ते तेज़ धुप, कड़ाके की ठण्ड और बारिश में भी आसानी से खुद को ढाल कर ज़िंदा रहते है।

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इसके अलावा इनकी सबसे ख़ास बात ये है कि एक दिन में 25 किलोमीटर तक पैदल चलने की क्षमता इनमें होती है, जबकि लैब्राडोर और अल्साटियन जैसे कुत्तों में ये क्षमता नहीं होती है। साथ ही विदेशी कुत्ते जलवायु के प्रति संवेदनशील भी होते हैं।