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हिंसा में स्कूल-कॉलेज छूटा, 50,000 हजार युवाओं बने विलेज वालंटियर

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दिल्ली। बीते दिनों मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने विधानसभा में दावा किया था कि राज्य में 3 मई 2023 को भड़की हिंसा के बाद से अब तक सिर्फ 5 बच्चों ने स्कूल छोड़ा है। लेकिन, उन्होंने यह नहीं बताया कि हिंसा के चलते कितने बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हुई। कितने युवाओं ने कॉलेज छोड़ दिया? 10 से 25 साल के कितने बच्चे विलेज गार्ड बन गए हैं?

मणिपुर पढ़ा-लिखा राज्य है। यहां की करीब 80% आबादी शिक्षित है। इनमें महिला साक्षरता 70% से ज्यादा है। लोग पढ़ाई को ज्यादा तवज्जो देते हैं। बावजूद इसके, हिंसा भड़कने के बाद से इस उम्र के हजारों युवा विलेज वॉलेंटियर बन गए थे। इनमें कई ऐसे हैं, जो आज तक स्कूल-कॉलेज नहीं लौट पाए हैं।

मैतेई इलाकों में इनकी संख्या करीब 50 हजार है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मैतेई बहुल इंफाल वेस्ट के कौट्रुक, कादगंबांद, फायेंग और इंफाल ईस्ट के पूखाओ, सांतिपुर, खामेंलोक, नूंगसम गांवों में पहुंची, जहां कम उम्र के विलेज वॉलेंटियर्स तैनात मिले।

तनाव से जूझ रहे वॉलेंटियर के लिए स्पोर्ट्स एक्टिविटी

कादगंबांद के एक ग्रुप के लीडर ने बताया कि हम एक साल से एक जैसी ही ड्यूटी कर रहे हैं। इस वजह से ज्यादातर वॉलेंटियर डिप्रेशन, तनाव, चिंता और घबराहट से जूझ रहे हैं। उनका मन बहलाने के लिए कैंप में कई फिटनेस गतिविधियां शुरू कराई हैं। उनके नैतिक मदद के लिए काउंसलिंग भी कराई जा रही है।

हिंसा शुरू होने के बाद हजारों युवा वॉलेंटियर खुद ही गांवों की रक्षा के लिए आगे आए थे। उन्हें बॉर्डर पर तैनात किया है, ताकि कुकी इलाकों से होने वाले हमलों पर वो 24 घंटे नजर रख सकें।

कैंप में बच्चों के रुकने, खाने के इंतजाम, पढ़ने की भी छूट

इंफाल सिटी के एक फुटबॉल खिलाड़ी और बीए थर्ड सेमेस्टर में पढ़ रहे 20 साल के वॉलेंटियर ने बताया कि राज्य की सुरक्षा से बढ़कर अभी कुछ नहीं है। मैं हिंसा की शुरुआत से ही अपने कैंप पर तैनात हूं। यहीं रहता हूं, खाता हूं और जो समय मिलता है, पढ़ लेता हूं। मैं पुराने दिनों को याद करता हूं, तब सब कुछ था। लेकिन अब स्वयं सेवा ही लक्ष्य है।