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स्कूलों में स्थानीय भाषा की शिक्षा लेंगे छात्र: अगले शैक्षणिक सत्र में तीन कक्षाओं की किताबें बदल जाएगी

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रायपुर। छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचलों के बच्चे स्थानीय बोली व भाषा में जल्द ही पढ़ाई कर सकेंगे। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ध्यान में रखते हुए विष्णुदेव सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इसके तहत सरकार आदिवासी अंचलों में बच्चों को उनकी स्थानीय बोली और भाषा में शिक्षा देने की पहल शुरू कर रही है। इसका उद्देश्य आदिवासी समुदायों में शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता को बढ़ाना है, जिससे बच्चे अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त कर सकें और अपनी संस्कृति से जुड़े रहें।

बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित करने और उन्हें स्कूल में नामांकन के लिए प्रेरित करने के लिए नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत में शाला प्रवेशोत्सव मनाया जाता है। इस बार राज्य स्तरीय शाला प्रवेशोत्सव का शुभारंभ छत्तीसगढ़ के दूरस्थ आदिवासी जिले जशपुर के बगिया गांव में किया गया। राजधानी रायपुर से हटाकर इस आदिवासी बहुल क्षेत्र में आयोजित इस कार्यक्रम ने राज्य के सुदूर कोने तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुंचाने की प्रतिबद्धता को दर्शाया।

बच्चों की समझ और सीखने की प्रक्रिया में सुधार होगा

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने स्थानीय भाषाओं में प्रारंभिक शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए कहा इससे बच्चों की समझ और सीखने की प्रक्रिया में सुधार होगा। वहीं, यह पहल स्थानीय संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण में भी मददगार होगी। इस पहल के तहत पाठ्यपुस्तकों और शिक्षण सामग्री को स्थानीय बोलियों में अनुवादित किया जाएगा और शिक्षकों को भी इन भाषाओं में प्रशिक्षित किया जाएगा।

पहले फेज में होंगी यह स्थानीय भाषाएं

पहले चरण में छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा, हल्बी, सादरी, गोंडी और कुडुख में कोर्स तैयार होंगे। इसके लिए प्रदेशभर के साहित्यकारों, लोक कलाकारों, संकलनकर्ताओं की मदद ली जाएगी। इसके अलावा वरिष्ठ नागरिक और शिक्षकों से भी सहयोग लिया जाएगा। हाई स्कूल बगिया के प्रधानाचार्य दिनेश शर्मा ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा आदिवासी बच्चों में प्रतिभाएं होती हैं। स्थानीय बोली में शिक्षा से आदिवासी अंचलों के ज्यादा से ज्यादा बच्चों को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।