बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक महत्वपूर्ण मामला सामने आया है, जहां एक अधिवक्ता ने जनहित याचिका दायर कर प्रदेश में लागू भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है। खास बात यह है कि याचिकाकर्ता अधिवक्ता अमन सक्सेना स्वयं इस याचिका पर डिवीजन बेंच के समक्ष पैरवी कर रहे हैं।
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हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने इस याचिका को गंभीरता से लिया है और राज्य सरकार से विभिन्न मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगा है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने राज्य शासन से पूछा है कि प्रदेश में ऐसे डिटेंशन सेंटर काम कर रहे हैं। सेंटरों की क्या स्थिति है। अब तक अधिनियम के तहत क्या कार्रवाई की गई है। शपथ पत्र के साथ जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच में जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अधिवक्ता अमन सक्सेना ने अपने मामले की पैरवी करते हुए कहा कि राज्य में लागू भिक्षावृति निवारण अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने की आवश्यकता है। अधिवक्ता की इस मांग पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या प्रदेश में इस एक्ट का दुरुपयोग किया जा रहा है। अगर ऐसी स्थिति है तो गंभीर बात है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता ने सीजे के इस सवाल के जवाब में कहा इस एक्ट में जिस तरह की शर्तें, नियम व मापदंड तय किए गए हैं इससे इस बात की आशंका हमेशा बनी रहेगी कि इस एक्ट का दुरुपयोग कभी भी और कहीं भी हो सकता है। अधिवक्ता ने कहा कि एक्ट का दुरुपयोग होगा इसलिए यह असंवैधानिक नहीं होगा। अगर एक्ट की गलत स्वरूप में बनाया गया है तो इसे असंवैधानिक कहा जा सकता है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता अमन सक्सेना ने डिवीजन बेंच को केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री द्वारा संसद में देशभर के राज्यों के पेश किए गए आंकड़े की जानकारी देते हुए कहा कि केंद्रीय मंत्री ने वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर छत्तीसगढ़ 8 हजार भिक्षुओं के रहने का उल्लेख किया गया था। अधिवक्ता ने कहा कि 2011 के बाद देश में जनगणना की प्रक्रिया प्रारंभ नहीं हो पाई है इसलिए यह माना जाना चाहिए कि प्रदेश में भिक्षुओं की संख्या में बढ़ोतरी हो गई है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता द्वारा दी गई जानकारी के बाद चीफ जस्टिस सिन्हा ने राज्य शासन की ओर से पैरवी कर रहे महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अधिकारी से भारत सरकार, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत किए गए डेटा के बारे में कोर्ट को सूचित करने का निर्देश दिया है। इसके लिए राज्य शासन को दो सप्ताह का समय दिया है। चीफ जस्टिस ने कहा कि शपथ पत्र के साथ यह भी जानकारी उपलब्ध कराएं कि प्रदेश में कितने डिटेंशन सेंटर संचालित किया जा रहा है और वर्तमान में क्या स्थिति है।
पुलिस किसी भी व्यक्ति को संदेह में कर सकती है डिटेन
जनहित याचिका में अधिवक्ता ने कहा कि प्रदेश में यह अधिनियम भिक्षा को अपराध की श्रेणी में मानता है। गरीब लोग जिनके पास दो वक्त की रोटी नहीं है, अगर वे पेट भरने के लिए भीख मांगते हैं तो उनको भी अधिनियम के दायरे में लाकर मुजरिम बनाया जा सकता है।
आशंका इस बात की भी प्रबल है कि इस विधान के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर डिटेन कर डिटेंशन सेंटर के हवाले कर सकती है। याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि मध्य प्रदेश में 1973 मे पारित इस विधान को छत्तीसगढ सरकार ने इसी स्वरुप में ही स्वीकार कर लिया है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश एक अभियान ऐसा भी
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा चौक-चौराहों पर भीख मांगने वालों की पहचान कर व्यवस्थापन का अभियान चला रहा है। बच्चों को स्कूल में एडमिशन कराने के अलावा पुरुष व महिलाओं को काम दिलाया जा रहा है। अन्य प्रदेशों से आए ऐसे लोगों की पहचान कर वापस भेजने का काम भी किया जा रहा है।