दिल्ली। देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) ने अपनी एक ताजा रिसर्च रिपोर्ट में दावा किया है कि देश में आर्थिक असमानता में कमी आई है।
कर योग्य आय के अध्ययन से पता चलता है कि आय में असमानता एसेसमेंट ईयर 2014-15 में 0.472 से घटकर 2022-23 में 0.402 पर आ गई है। रिपोर्ट में बताया कि 2014-15 के दौरान 3.5 लाख रुपए से कम आय वाले 36.3% करदाता ऊपरी आयवर्ग में पहुंच गए हैं। वहीं 3.5 से 5 लाख रुपए और 5 से 10 लाख रुपए की सालाना आय वाली श्रेणी में 15.3% आयकरदाता पहुंच गए हैं। इसके साथ 5.2 फीसदी करदाता 10 से 20 लाख और बाकी लोग 20 लाख रुपए सालाना इनकम से ऊपर वाले ब्रैकेट में जा चुके हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 4 लाख रुपए से कम आय वाले समूह में शामिल 21.1 फीसदी लोगों में 6.6 फीसदी 4 से 5 लाख रुपए इनकम वाले ब्रैकेट में जा चुके हैं। वहीं 7.1 फीसदी लोग 5 से 10 लाख रुपए और 2.9 फीसदी 20 से 50 लाख रुपए सालाना इनकम के सेगमेंट में शामिल हो चुके हैं। इसके साथ ही 0.8 फीसदी 50 लाख से 1 करोड़ रुपए सालाना आय वाले गु्रप में शामिल हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि देश में महिला श्रम की भागीदारी भी बढ़ी है।
रिटर्न दाखिल करने वाले बढ़े
रिपोर्ट के मुताबिक एसेसमेंट ईयर 2022 में 7 करोड़ टैक्सपेयर्स ने टैक्स रिटर्न दाखिल किया था। इनकी संख्या 2023 में बढ़कर 7.40 करोड़ हो गई। वहीं 2023-24 में 8.20 करोड़ टैक्स पेयर्स रिटर्न दाखिल कर चुके हैं। 31 मार्च, 2024 वित्त वर्ष के खत्म होने तक यह संख्या 8.50 करोड़ तक जा सकती है।
‘के आकार’ के दावे दोषपूर्ण
एसबीआई ने रिपोर्ट में कहा कि महामारी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘के आकार’ की रिकवरी के दावे दोषपूर्ण, पूर्वाग्रह से ग्रसित और मनगढ़ंत है। महामारी के बाद भारतीय अपनी बचत को अचल संपत्ति में निवेश कर रहे हैं। ‘के आकार’ की अर्थव्यवस्था में अलग-अलग हिस्सों की वृद्धि समान ढंग से नहीं होती है और कमजोर तबका अधिक गरीब होता जा रहा है। इस तरह की राय रखने वाले विशेषज्ञों में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी शामिल हैं।