जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा वर्ष 2023 की पूजा विधान “डेरी गड़ाई” का कार्यक्रम 27 सितंबर को सिरहासार भवन में दोपहर 11 बजे आयोजित किया गया है। डेरी गड़ाई रस्म बस्तर दशहरा में पाटजात्रा के बाद दुसरी सबसे महत्वपूर्ण रस्म होती है। पाठ-जात्रा से प्रारंभ हुई पर्व की दूसरी रस्म को ‘डेरी गड़ाई’ कहा जाता है। इस रस्म में एक खम्बे की स्थापना की जाती है। हर वर्ष हरियाली अमावस्या को बस्तर दशहरा की शुरूआत पाटजात्रा की रस्म से होती है, वहीं पाटजात्रा के बाद “डेरी गड़ाई” की रस्म दुसरी बेहद महत्वपूर्ण रस्म होती है।
पाटजात्रा के बाद बस्तर दशहरे का सबसे महत्वपूर्ण रस्म डेरी गड़ाई रस्म होता है। इस रस्म के बाद ही रथ निर्माण के लिए लकड़ी लाने के साथ रथ निर्माण का सिलसिला शुरू होता है। इस रस्म के अनुसार बस्तर जिले के ग्राम बिरिंगपाल के जंगल से साल प्रजाति की दो शाखा युक्त लकड़ी, (स्तम्भनुमा लकड़ी का लगभग 10 फुट का ऊँचा लकड़ी) लाई जाती है इसे ही डेरी कहते है।
जिसे परम्परा के अनुसार दशहरा पर्व के प्रारंभ होने के पूर्व स्थानीय सिरहासार भवन में स्थापित की जाती है। डेरी स्थापित करने के लिए 15 से 20 फीट की दूरियों पर दो गढ्ढे किए जाते हैं, इन गढ्ढों में जनप्रतिनिधियों और दशहरा समिति के सदस्यों की उपस्थिति में पुजारी के द्वारा डेरी में हल्दी, कुमकुम, चंदन का लेप लगाकर दो सफेद कपड़े बाँधकर पूजा सम्पन्न किया जाता है।
इन गढ्ढों पर डेरी स्थापित करने के पूर्व जीवित मोंगरी मछली और अण्डा छोड़ी जाती है तथा फूला लाई डालकर डेरी स्थापित की जाती है। इसकी प्रतिस्थापना ही डेरी गड़ाई कहलाती है। इस शाखा-युक्त डेरी के गड़ाई को एक तरह से मण्डापाच्छादन का स्वरूप माना जाता है।
दशहरा पर्व में विभिन्न रस्मों के दौरान दी जाने वाली मोंगरी मछली की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी रियासत काल से समरथ परिवार को दी गई है। इसी क्रम में डेरी लाने का कार्य बिरिंगपाल के ग्रामीणों के जिम्मे होता है। इस डेरी की पूजा-पाठ के साथ स्थापना करके दंतेश्वरी माता से विश्व प्रसिद्ध दशहरा रथ के निर्माण की प्रक्रिया को शुरू करने की इजाजत ली जाती है।
15 अक्टूबर को कलश स्थापना के साथ जोगी बिठाई…
ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व में विभिन्न पूजा विधानों के दौरान आगामी 14 अक्टूबर को काछनगादी पूजा विधान,15 अक्टूबर को कलश स्थापना एवं जोगी बिठाई रस्म पूरी की जाएगी। वहीं 21 अक्टूबर को बेल पूजा और रथ परिक्रमा विधान, 22 अक्टूबर को निशा जात्रा व महालक्ष्मी पूजा विधान, 23 अक्टूबर को कुंवारी पूजा विधान, जोगी उठाई और मावली परघाव पूजा विधान होगी। ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व के दौरान 24 अक्टूबर को भीतर रैनी पूजा व रथ परिक्रमा पूजा विधान, 26 अक्टूबर को काछन जात्रा तथा 27 अक्टूबर को कुटुम्ब जात्रा पूजा विधान पूरी की जाएगी और 31 अक्टूबर को माई दन्तेश्वरी की विदाई के साथ ही विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व सम्पन्न होगी।