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भारतमाला सड़क के लिए छूटी हुई 65 एकड़ जमीन के अधिग्रहण का रास्ता साफ

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दुर्ग। केंद्र सरकार की भारत माला परियोजना (DURG NEWS) के तहत दुर्ग के अंजोरा से रायपुर के आरंग के बीच 93 किमी सिक्स लेन एक्सप्रेस कॉरिडोर सड़क का निर्माण प्रस्तावित है। इसके लिए पहले चरण जिले के 26 गांवों के 1349 किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया गया है। जिले में करीब 44.50 किमी सड़क के लिए जमीन के खसरा नंबर चिन्हित कर अधिग्रहण के लिए नोटिफिकेशन जारी कर मुआवजे का वितरण पहले ही शुरू कर दिया गया है। अब पूरक अधिग्रहण के बाद इन किसानों को भी जल्द मुआवजे का भुगतान करने की तैयारी की जा रही है।

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दुर्ग-रायपुर के बीच भारतमाला परियोजना (DURG NEWS)  के तहत प्रस्तावित सिक्सलेन सड़क के लिए छूटी हुई जमीन के पूरक अधिग्रहण का रास्ता साफ हो गया है। जमीन के अधिग्रहण पर आपत्तियों के निराकरण के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम की धारा 3 घ के तहत राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित कर दी गई है। जिसके मुताबिक सेकंड फेज में पाटन ब्लाक के 232 किसानों के 18.13 हेक्टेयर और दुर्ग ब्लाक के 237 किसानों के 23.69 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की गई है। इन किसानों को 80 करोड़ से ज्यादा मुआवजे का भुगतान किया जाएगा।

पुराने भुगतान में अभी भी पेंच

इधर परियोजना के तहत पहले चरण (DURG NEWS)  में अधिग्रहित की गई जमीन को लेकर विवाद और मुआवजे के प्रकरणों का निपटारा अब तक नहीं हो पाया है। इसमें मुआवजे की दर, परिसंपत्तियों, भूमि के प्रकार सहित अन्य विवाद से जुड़े कई मामले हैं। किसानों के मुताबिक करीब 300 किसानों के पुराने प्रकरणों के मुआवजे की राशि अब तक नहीं मिली है।

200 से ज्यादा प्रकरण कोर्ट में

भूमि अधिग्रहण और मुआवजे को लेकर गतिरोध (DURG NEWS)  के कारण करीब 200 किसानों के अलग-अलग प्रकरण हाईकोर्ट में लंबित है। किसानों ने अधिग्रहण और मुआवजे की गणना का फिर से परीक्षण की मांग को लेकर यह याचिका लगाई है। इनमें पाटन और दुर्ग के अलावा आरंग के भी किसान शामिल हैं। कोरोना के गतिरोध के कारण इन प्रकरणों की सुनवाई अटकी हुई है।

तीन साल से चल रहा अधिग्रहण

नेशनल हाइवे की लेटलतीफी के कारण जमीन अधिग्रहण का मामला करीब तीन साल से अधर में चल रहा है। पहले जमीन के नापजोख और बाद में परिसंपत्तियों के मूल्यांकन में देरी की गई। खास बात यह है कि जिला प्रशासन ने प्रस्तावित इलाके में जमीन की खरीदी बिक्री पर रोक लगा रखी है। इसके कारण किसान न तो जमीन बेंच पा रहे हैं और न ही कोई दूसरा उपयोग नहीं कर पा रहे हैं।