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गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- धर्म की आजादी में मतांतरण का अधिकार शामिल नहीं

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दिल्ली। गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (SC) में कहा है कि धर्म की आजादी में दूसरों को धोखाधड़ी, जबरदस्ती, लालच या अन्य ऐसे साधनों से मतांतरित करने का अधिकार शामिल नहीं है। साथ ही शीर्ष अदालत से अनुरोध किया कि शादी के जरिये मतांतरण में जिलाधिकारी की पूर्व अनुमति को अनिवार्य बनाने वाले प्रदेश के कानून पर हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई रोक को हटाया जाए। गुजरात हाई कोर्ट ने 19 अगस्त और 26 अगस्त, 2021 के अपने आदेशों के जरिये प्रदेश सरकार के धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 की धारा-पांच पर रोक लगा दी थी।

स्थगनादश को रद करने की मांग की है

वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका (SC)  पर दाखिल अपने हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा कि उसने एक आवेदन दाखिल करके हाई कोर्ट के स्थगनादश को रद करने की मांग की है ताकि गुजरात में जबरन, लालच या धोखाधड़ी से मतांतरण को प्रतिबंधित करने वाले प्रविधानों को लागू किया जा सके। प्रदेश सरकार ने कहा कि संविधान सभा में संविधान के अनुच्छेद-25 में प्रचार शब्द के अर्थ और अभिप्राय पर विस्तार से चर्चा हुई थी और इसे शामिल करने का प्रस्ताव इस स्पष्टीकरण के साथ पारित हुआ था कि अनुच्छेद-25 के तहत मौलिक अधिकार में मतांतरण का अधिकार शामिल नहीं होगा।

स्वतंत्रता के अधिकार का अतिक्रमण करता है

इसमें कहा गया है कि मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 और ओडिशा धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 1967 दोनों गुजरात धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 के साथ समान विषय पर हैं और उन्हें 1977 में संविधान पीठ के समक्ष चुनौती दी गई थी। इस अदालत ने माना था कि धोखे से या प्रेरित मतांतरण सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने के अलावा किसी व्यक्ति की अंतरात्मा के स्वतंत्रता के अधिकार का अतिक्रमण करता है, इसलिए राज्य को इसे विनियमित या प्रतिबंधित करने का अधिकार है। इसीलिए गुजरात धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 जैसे कानूनों को इस अदालत ने वैध ठहराया था। लेकिन आदेश पारित करते समय हाई कोर्ट इस पर विचार करने में विफल रहा कि 2003 के अधिनियम की धारा-पांच पर रोक लगाने से अधिनियम का पूरा उद्देश्य प्रभावी रूप से विफल हो गया।

मतांतरण करने का अधिकार

इस कानून में अपनी इच्छा से मतांतरण करने (SC) का अधिकार है, लेकिन पूर्व अनुमति के प्रविधान से जबरन मतांतरण पर रोक लगती है। बता दें कि 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि जबरन मतांतरण देश की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है और नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात करता है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह इस बेहद गंभीर मुद्दे से निपटने के लिए कदम उठाए और गंभीर प्रयास करे। अदालत ने चेतावनी दी थी कि अगर धोखे, प्रलोभन और डराने-धमकाने के जरिये मतांतरण को नहीं रोका गया तो बहुत मुश्किल स्थिति पैदा हो जाएगी। शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर 23 सितंबर को केंद्र और अन्य से जवाब तलब किया था।