रायपुर। नवरात्रि 2022 में आज षष्ठी तिथि को माँ दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा अर्चना का विधान है। ऐसी मान्यता है कि माँ कात्यायनी का जन्म महर्षि कात्यायन के घर हुआ था, इसीलिए इन्हें कात्यायनी का नाम मिला। एक किवदंती ये भी है कि गोपियों ने श्रीकृष्ण को पाने के लिए इनकी पूजा की थी।
ऐसा कहा जाता है कि जिन कन्या के विवाह में रुकावटें आ रही हैं, उसकी कुंडली में विवाह-दोष है, अगर नौ दिन के उपवासकाल में माता कात्यायनी की पूजा-अर्चना करे तो उसे मनचाहा और योग्य जीवन साथी मिलता है। यह देवी का वही स्वरूप है, जिन्होंने महिषासुर का वध किया था, इसलिए ये असुरों और पापियों का नाश करनेवाली देवी कहलाती है।
ऐसा है माँ कात्यायनी का दिव्य स्वरूप
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार माता कात्यायनी की पूजा गृहस्थ और विवाह के इच्छुक व्यक्तियों के साथ-साथ शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों के लिए भी बेहद लाभदायक होता है। क्योंकि माता कात्यायनी अमोद्य फल देनेवाली माँ है। इनका व्यक्तित्व शांत एवं सौम्य है। संपूर्ण व्यक्तित्व स्वर्ण की भांति दमकता रहता है। इनके सिर पर मुकुट सुशोभित हो रहा है। माता कात्यायनी की चार भुजाएं है। एक हाथ में खडग, दूसरे हाथ में कमल का फूल है, जबकि शेष दो हाथ वर मुद्रा और अभय मुद्रा में है। माता कात्यायानी सिंह की सवारी करती है, वे ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी है।
माता कात्यायनी की पूजा विधि
नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायनी की उपासना एवं पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है। माँ कात्यायनी को चांदी या मिट्टी के पात्र में शहद अर्पित करें। इससे आपका आकर्षण बढ़ेगा। पूजा के बाद शहद को भक्तों में वितरित कर दें। चैत्र मास की षष्ठी के दिन सर्वप्रथम स्नान-ध्यान कर घर के मंदिर के सामने एक लकड़ी की स्वच्छ चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। अब मां कत्यायनी की प्रतिमा अथवा तस्वीर इस चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद मां की पूजा लाल पुष्प, अक्षत, रोली, सिंदूर, धूप-दीप प्रज्जवलित कर पूजा आराधना करें, जैसा कि नवरात्रि के पहले पांच दिन से करते आ रहे है।