नागपुर। विजयदशमी पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने नागपुर में शस्त्रपूजन किया। जिसके बाद उन्होंने देश भर के कार्यकर्ताओं को वीडियों कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए सम्बोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन की शुरुवात श्रीराम मंदिर के फैसले से की।
उन्होंने कहा कि “9 नवंबर को श्रीरामजन्मभूमि के मामले में अपना असंदिग्ध निर्णय देकर सर्वोच्च न्यायालय ने इतिहास बनाया। भारतीय जनता ने इस निर्णय को संयम और समझदारी का परिचय देते हुए स्वीकार किया।” उन्होंने कहा कि “विश्व के अन्य देशों की तुलना में हमारा भारत संकट की इस परिस्थिति में अधिक अच्छे प्रकार से खड़ा हुआ दिखाई देता है। भारत में इस महामारी की विनाशकता का प्रभाव बाकी देशों से कम दिखाई दे रहा है, इसके कुछ कारण हैं।”
भागवत ने कहा कि ” स्वतंत्रता के बाद धैर्य, आत्मविश्वास व सामूहिकता की अनुभूति अनेकों ने पहली बार पाई है।” उन्होंने कहा कि “हिन्दुत्व’ऐसा शब्द है,जिसके अर्थ को पूजा से जोड़कर संकुचित किया गया है।संघ की भाषा में उस संकुचित अर्थ में उसका प्रयोग नहीं होता।वह शब्द अपने देश की पहचान को,अध्यात्म आधारित उसकी परंपरा के सनातन सातत्य तथा समस्त मूल्य सम्पदा के साथ अभिव्यक्ति देने वाला शब्द है।”
‘हिन्दुत्व’ऐसा शब्द है,जिसके अर्थ को पूजा से जोड़कर संकुचित किया गया है।संघ की भाषा में उस संकुचित अर्थ में उसका प्रयोग नहीं होता।वह शब्द अपने देश की पहचान को,अध्यात्म आधारित उसकी परंपरा के सनातन सातत्य तथा समस्त मूल्य सम्पदा के साथ अभिव्यक्ति देने वाला शब्द है।#RSSVijayaDashami pic.twitter.com/gLLIbIjo2q
— RSS (@RSSorg) October 25, 2020
संघ मानता है कि ‘हिंदुत्व’शब्द भारतवर्ष को अपना मानने वाले,उसकी संस्कृति के वैश्विक व सर्वकालिक मूल्यों को आचरण में उतारना चाहने वाले तथा यशस्वी रूप में ऐसा करके दिखाने वाली उसकी पूर्वज परम्परा का गौरव मनमें रखने वाले सभी 130करोड़ समाज बन्धुओं पर लागू होता है।”
“संघ मानता है कि ‘हिंदुत्व’शब्द भारतवर्ष को अपना मानने वाले,उसकी संस्कृति के वैश्विक व सर्वकालिक मूल्यों को आचरण में उतारना चाहने वाले तथा यशस्वी रूप में ऐसा करके दिखाने वाली उसकी पूर्वज परम्परा का गौरव मनमें रखने वाले सभी 130करोड़ समाज बन्धुओं पर लागू होता है।”#RSSVijayaDashami pic.twitter.com/kS1J5QByX5
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कोरोना पर चीन की भूमिका संदिग्ध
दुनिया भर में फैले कोरोना महामारी पर भी भागवत ने चीन की संदिग्ध और भारत की मज़बूत स्तिथि पर अपनी बात रखी है। मोहन भागवत ने कहा कि “इस महामारी के संदर्भ में चीन की भूमिका संदिग्ध रही यह तो कहा ही जा सकता है, परंतु भारत की सीमाओं पर जिस प्रकार से अतिक्रमण का प्रयास अपने आर्थिक सामरिक बल के कारण मदांध होकर उसने किया वह तो सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट है।
उन्होंने कहा कि”भारत का शासन, प्रशासन, सेना तथा जनता सभी ने इस आक्रमण के सामने अड़ कर खड़े होकर अपने स्वाभिमान, दृढ़ निश्चय व वीरता का उज्ज्वल परिचय दिया, इससे चीन को अनपेक्षित धक्का मिला लगता है। इस परिस्थिति में हमें सजग होकर दृढ़ रहना पड़ेगा।”
सेना के साहस का बखान करते हुए सारसंघचालक मोहन भगवत ने कहा कि ” हमारी सेना की अटूट देशभक्ति व अदम्य वीरता, हमारे शासनकर्ताओं का स्वाभिमानी रवैया तथा हम सब भारत के लोगों के दुर्दम्य नीति-धैर्य का परिचय चीन को पहली बार मिला है।
हम सभी से मित्रता चाहते हैं। वह हमारा स्वभाव है। परन्तु हमारी सद्भावना को दुर्बलता मानकर अपने बल के प्रदर्शन से कोई भारत को चाहे जैसा नचा ले,झुका ले,यह हो नहीं सकता,इतना तो अब तक ऐसा दुःसाहस करने वालों को समझ में आ जाना चाहिए।”