दिल्ली। पारिवारिक संबंधों को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का अहम फैसला आया है।फैसले में परिवार के पारंपरिक अर्थ का विस्तार किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक संबंधों में अविवाहित भागीदारी या समलैंगिक संबंध भी शामिल हैं। असामान्य पारिवारिक इकाइयां भी कानून के समान संरक्षण की हकदार हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने फैसले में कहा कि कानून और समाज दोनों में” परिवार “की अवधारणा की प्रमुख समझ यह है कि इसमें माता और पिता और उनके बच्चों के साथ एक एकल, अपरिवर्तनीय इकाई होती है। यह धारणा कई परिस्थितियों में दोनों की उपेक्षा करती है, जो किसी के पारिवारिक ढांचे में बदलाव का कारण बन सकती है।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को दी चुनौती
सुप्रीम कोर्ट ने 16 अगस्त को दिए एक फैसले में ये कहा कि ये टिप्पणियां केंद्र सरकार की एक कर्मचारी को मातृत्व अवकाश की राहत देते हुए की गई हैं। कहा गया कि – कानून के काले अक्षर को पारंपरिक लोगों से अलग वंचित परिवारों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। निस्संदेह उन महिलाओं (Supreme Court) के लिए सच है, जो मातृत्व की भूमिका निभाती हैं, जो लोकप्रिय कल्पना में जगह नहीं पा सकती हैं। इस मामले में महिला के पति की पिछली शादी से दो बच्चे थे और उसने पहले अपने गैर-जैविक बच्चे के लिए चाइल्ड केयर लीव का लाभ उठाया था। जब शादी में उसके एक बच्चे का जन्म हुआ, तो अधिकारियों ने मातृत्व अवकाश से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक वर्तमान मामले में एक उद्देश्यपूर्ण व्याख्या नहीं अपनाई जाती, मातृत्व अवकाश देने का उद्देश्य और मंशा विफल हो जाएगी।