रायपुर। हिन्दू संवत्सर के पौष माह की पूर्णिमा तिथि पर सोमवार को छेरछेरा पर्व (cherchera festival) मनाया गया। सुबह से ही बच्चे हाथों में थैला लेकर घर घर पहुंचे और दान मांगा। दान देने के महत्व को दर्शाने वाले छेरछेरा पुन्नी पर श्रद्घालुओं ने अनाज का दान कर पुण्य कमाया। घर पर आई बच्चों की टोली को अनाज, रुपये देकर हंसी खुशी विदा किया।
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राजधानी रायपुर के अनेक इलाकों में बच्चे हाथ में टोकनी व झोला लेकर घर-घर में छेरछेरा (cherchera festival) का दान मांगते नजर आए। दान मांगते समय बच्चों ने ‘छेरी के छेरा छेर-छेर, माई कोठी के धान ला हेर-हेर.’की आवाज लगाई। आवाज सुनते ही घर की महिलाएं बर्तन में अनाज लेकर बाहर आई और खुशी खुशी दान करने की परंपरा निभाई।
दान से सुख समृद्धि
महामाया मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला के अनुसार पौष माह की पूर्णिमा को सुबह स्नान, पूजा पाठ करके दान देने से सालभर घर में सुख समृद्धि रहती है। मान्यता है कि पुन्नी (cherchera festival) के दिन दान करने से राजा बलि के समान सुख-समृद्घि व यश की प्राप्ति होती है।
शिव ने मांगी थी पार्वती के घर भिक्षा
मान्यता के अनुसार पार्वती से विवाह पूर्व भोलेनाथ ने कई किस्म की परीक्षाएं ली थीं। उनमें एक परीक्षा यह भी थी कि वे नट बनकर नाचते_गाते पार्वती के निवास पर भिक्षा मांगने गये थे। स्वयं ही अपनी (शिव की) निंदा करने लगे थे, ताकि पार्वती उनसे (शिव से) विवाह करने के लिए इंकार कर दें।
एक अन्य कथा के अनुसार भूमालिक धान के फसल को खलिहान से घर की कोठी में भर लेते थे, लेकिन साल भर तक खेतों में काम करने वाले मजदूरों को मजदूरी के अलावा कुछ नही देते थे। इसे देखकर धरती माता ने अन्न उपजाना बंद कर दिया। घोर अकाल पड़ गया। भूमि मालिकों ने धरती माता की पूजा की। धरती माता प्रकट होकर बोलीं कि आज से उपज का कुछ हिस्सा गरीब, बनिहार मजदूरों को दान करोगे तभी अकाल मिटेगा। इसके बाद धान का दान देने की परंपरा चल पड़ी।