रायपुर, 11 सितंबर 2020 / दुनिया वालों की नजर में यह काम बहुत छोटा है, लेकिन इस छोटे से काम को कोई अपनाना नहीं चाहता। हर कोई इस काम से दूर भागना चाहता है। कुछ जिन्होंने अपनाया है, उनकी मजबूरी है, पेट पालने की, परिवार पालने की। वैसे तो कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता, लेकिन यह कलयुग है। हर काम की कीमत होती है और जहां किसी की कीमत होती है, वहीं से ही उस काम या चीज का फर्क छोटे या बड़े में आंका जाता है। यह काम भी अपनी कीमत की वजह से छोटा है। द्वापर युग में एक वे कन्हैया थे जो बांसुरी बजाते थे, पीडितों के दुख-दर्द दूर कर देते थे। अब कलयुग है और इंसान के रुप में अनेक कन्हैया हो सकते हैं। ऐसा ही एक कन्हैया है जो बांसुरी तो नहीं बजाता, अलबत्ता उसकी सीटी रोज बजती है। वह भी सैकड़ों का दुख-दर्द दूर कर देता है। दरअसल यह कन्हैया एक सफाईकर्मी है और रोज लोगों के घरों का कचरा उठाकर सबको बीमार होने से बचाता है। बचपन से ही ठीक से बोल नही सकने वाला, ठीक से चल नहीं सकने वाला यह कन्हैया अपनी मेहनत और स्वाभिमान के बलबूते बहुत लोगों के लिए प्रेरणा और आदर्श बन सकता है, जो शारीरिक रूप से सही सलामत है।

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सफाईकर्मी कन्हैया की भागदौड़ की शुरुआत सूरज निकलने के पहले ही शुरु हो जाती है। अपनी रिक्शा लेकर गली-मुहल्ले में घुसते ही गले में रस्सी से लटकी हुई सीटी मंुह पर आ जाती है। जोर-जोर से सांस भरते हुए वह जैसे ही सीटी बजाता है, घर में मौजूद लोग चैकन्ने हो जाते हैं। इस दौरान चाहे कोई काम कितना भी बड़ा ही क्यो न हो ? कन्हैया की सीटी के आगे सब काम बौना हो जाता है। आखिरकार घर का दरवाजा खुलता है और कन्हैया के रिक्शे में घर-घर की मुसीबत कचरे के रूप में उडेल दी जाती है। किसी घर में जमा हुई कचरे की अहमियत तो घर वाला ही जानता है क्योंकि वह अपना घर साफ-सुथरा रखना चाहता है। एक दिन के भीतर ही जमा हुए कचरे में खान-पान के अपशिष्ट के अलावा न जाने और भी कितने वे अपशिष्ट और अनुपयोगी सामग्रियां होती है जो बीतते हुए समय के साथ घर में परेशानी का सबब बनती जाती है। कन्हैया रोज सबके घरों से गीला और सूखा कचरा उठाकर लोगों की परेशानियों को दूर कर देता है। इस बीच घर में मौजूद गंदगी कन्हैया के रिक्शे में चले जाने के साथ ही मानों घर में खुशी की एक लहर सी छा जाती है।

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कन्हैया प्रतिदिन रिक्शे से घूम-घूम कर टाटीबंद से लगे कबीर नगर के लगभग 200 घरों का कचरा उठाता है। सुबह 7 बजे से दोपहर 2 बजे तक अपनी डयूटी में वह पूरी ईमानदारी अपनाता है। लड़खड़ाती जुबान और चाल उसकी जिंदगी का हिस्सा है। शायद यह कोई बीमारी हो। कोरोना संक्रमण के दौर में बखूबी अपने दायित्वों को निभाते आ रहे कन्हैया ने कोरोना के डर से कभी खुद को कचरा उठाने से अलग नहीं किया। उसकी शारीरिक परेशानी भी कभी आड़े नहीं आई। वह कहता भी है कि बचपन से ही मेहनत करने वाले को भला रिक्शा खींचने में क्या परेशानी आएगी?

खैर कन्हैया तो कलयुग का कन्हैया है। बचपन से ही पिता का साया उठ जाने के बाद महज 14 साल की उम्र से ही दुश्वारियों के बीच जीना सीख लिया। आज वह 28 साल का है और घर-घर जाकर रिक्शा खींचते, कचरा उठाते 5 साल हो गए। वह कहता है कि कोई किसी का साथ नहीं देता। अपनी मेहनत और स्वाभिमान ही सब कुछ है। पिताजी के रहते उसने पांचवीं तक पढ़ाई की, लेकिन उनकी मौत के बाद उसे मजबूरन काम करना पड़ा। घर में उसकी माता है, जो मजदूरी करती है। एक छोटा भाई और बहन भी है जो घर पर रहते हैं।

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कन्हैया ने बताया कि कोरोना संक्रमण के पहले सीटी की आवाज सुनकर लोग घरों के बाहर आते थे, कचरा रिक्शा में डालने के साथ कुछ बात भी कर लिया करते थे। अभी ऐसा नहीं है। सीटी बजाने के बाद लोग चैकन्ने तो हो जाते हैं लेकिन कचरा दूर से ही फेंकते हुए बिना कुछ बोले चुपचाप घर में घुस जाते हैं। कन्हैया बताता है कि अधिकांश लोग कोरोना संक्रमण की डर से उनसे बात नहीं करना चाहते होंगे, इसलिए वह भी चुपचाप अपना काम कर निकल जाता है। प्रतिदिन अपने घर का कचरा कन्हैया के रिक्शा में उड़ेलने वाली श्रीमती वीणा देवी कहती है कि कोरोना महामारी जैसे संकटकाल में किसी अनजान तो दूर अपने परिचितों से हाथ मिलाने में परहेज करने वाले लोग कन्हैया जैसे सफाईकर्मी की परवाह शायद ही करते होंगे। कम पगार में अपने परिवार का खर्च उठाकर एक जिम्मेदार नागरिक का परिचय देने वाला कन्हैया बहुतों की समस्याओं को भले ही पैसे के खातिर दूर करता है लेकिन यह भी सत्य है कि किसी के घर की गंदगी को साफ करना और उन्हें राहत देना कोई आसान काम भी नहीं है। हम इस कलयुग में लापरवाही के किस्से बहुत देखते हैं। जिम्मेदार पद पर होते हुए भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं किया जाता। ऐसे में कन्हैया वह कोरोना वारियर है जो हर किसी के मुसीबतों को दूर कर रहा है। हमें भी चाहिए कि समाज में एक अलग ही भावना से देखे जाने वाले इन कन्हैया जैसे सफाईकर्मियों के रिक्शे में कचरा डालते वक्त इनसे दूर से ही सही कुछ मिनट बात कर इनका सुख-दुख जान ले ताकि आपका घर साफ-सुथरा रहे और कोई बीमारी न फैले।

कमलज्योति/ विष्णु वर्मा, सहायक जनसंपर्क अधिकारी