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देश में 10 लाख टीचरों की कमी, सबसे खराब हालत यूपी-एमपी व बिहार की

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दिल्ली। भारत में पढ़ाई लिखाई के मोर्चे पर एक काफी चिंताजनक तस्वीर यूनेस्को (UNESCO) ने पेश की है। इसके अनुसार, देश के स्कूलों में दस लाख टीचरों की कमी है। यही नहीं, अभी जितने टीचर हैं उनमें से 30 फीसदी अगले 15 साल में रिटायर हो जाएंगे सो उनका रिप्लेसमेंट भी होना होगा। भारत में 11 लाख स्कूल ऐसे हैं, जहां सिर्फ एक ही टीचर है। देश के स्कूलों में टीचरों के 19 फीसदी पद खाली पड़े हैं। इनकी संख्या 11.16 लाख बैठती है। ग्रामीण इलाकों में तो हाल और भी बुरा है जहां 69 फीसदी तक पद खाली हैं।

शिक्षण का पेशा लैंगिक संतुलित

‘भारत में शिक्षा की स्थिति 2021 – न शिक्षक, न कक्षा’, शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में शिक्षण का पेशा लैंगिक संतुलित है । यानी करीब पचास फीसदी शिक्षक महिलाएं हैं। लेकिन शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ असंतुलन भी है। खासकर छोटे बच्चों की शिक्षा, विशेष शिक्षा और बिना सरकारी सहायता वाले निजी स्कूलों में महिलाएं का बोलबाला है। यूनेस्को (UNESCO) की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश भर में टीचरों के काम करने की स्थितियों में शहरी व ग्रामीण इलाकों में बहुत फर्क है।

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हिंदी बेल्ट में सबसे कम टीचर

यूनेस्को (UNESCO) की रिपोर्ट बताती है कि देश के हिंदी बेल्ट में सबसे कम टीचर हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश जैसे राज्य हैं । यहां टीचरों की सर्वाधिक वैकेंसी हैं। उत्तरप्रदेश और बिहार में एक लाख से ज्यादा वैकेंसी है, जो देश में सबसे ज्यादा है। देश के ग्रामीण इलाकों में 60 फीसदी वैकेंसी हैं । इस मामले में यूपी टॉप पर है। कुल ग्रामीण वैकेंसी का 80 फीसदी उत्तर प्रदेश में है।

  • मात्र एक टीचर वाले स्कूलों के मामले में मध्यप्रदेश सबसे ऊपर है । जहां सिंगल टीचर वाले स्कूलों की संख्या 21 हजार है।
  • भारत में 7.7 फीसदी प्री प्राइमरी, 4.6 फीसदी प्राइमरी और 3.3 फीसदी उच्च प्राइमरी स्कूलों में कम योग्यता वाले टीचर हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल टीचरों में से 30 फीसदी निजी और गैर सहायता प्राप्त सेक्टर में लगे हुए हैं, जबकि सरकारी सेक्टर में 50 फीसदी वर्कफोर्स है।
  • निजी स्कूलों और छोटे बच्चों की शुरुआती शिक्षा से जुड़े टीचरों को कम वेतन मिलता है, चिकित्सा या मातृत्व अवकाश तक नहीं मिलता है।