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संस्कृत दिवस विशेष : संस्कृत बहुत ही उपयोगी और जीवन को संवारने वाली भाषा

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रायपुर। श्रावण पूर्णिमा को ही संस्कृत दिवस के रूप मे मनाया जाता है। देश मे केंद्र सरकार के शिक्षा विभाग के निर्देश पर वर्ष 1969 से संस्कृत दिवस मनाया जाना शुरू हुआ। ऋषियों ने ही संस्कृत मे विविध ग्रंथों को सहेजे हैं, इसलिए ऋषि परंपरा को सम्मान देने श्रावण पूर्णिमा को संस्कृत दिवस के लिए चयन किया गया। वर्ष 2001 मे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के पहल पर संस्कृत सप्ताह मनाना शुरू हुआ जो अनवरत जारी है।

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भारतीय पुरातन संस्कृति और सनातन संस्कृति को बचाये रखने में संस्कृत भाषा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जीतने भी वेद, पुराण, ग्रंथ हैं वे सभी मूल रूप मे संस्कृत भाषा मे ही लिखे गए हैं। वेद पुरणों की महत्ता को देखते हुए अब विश्व की अन्य भाषाओं मे इसका अनुवाद किया जा रहा है। यदि वेद, पुराण, उपनिषद के मूल अर्थ को समझना हो तो संस्कृत भाषा सीखना आवश्यक है।

प्रतियोगी परीक्षाओं में भी संस्कृत से प्रश्न

प्रतियोगी परीक्षाओं मे भी संस्कृत से प्रश्न पूछे जाने लगे हैं इसलिए संस्कृत बहुत ही उपयोगी है। कई लोग यूपीएससी, पीएससी मे संस्कृत विषय लेकर परीक्षा दे रहे हैं क्योंकि अभी संस्कृत में प्रतिद्वंदी कम है और उनके चयन होने की संभावना अधिक। यह चर्चा संस्कृतभारती द्वारा संस्कृत सप्ताह और संस्कृत दिवस मनाये जाने पर आयोजित व्याख्यान मे हुआ।

 

प्रांतमंत्री डॉ. दादूभाई त्रिपाठी ने कहा कि “श्रावणी पूर्णिमा पर श्रावणी उपाकर्म और संस्कृत दिवस मनाया जाता है। संस्कृत भाषा के सम्मान मे श्लोक वाचन, सूक्ति, संस्कृत संभाषण, प्रश्नोत्तरी, गीता पाठ, संस्कृत में गीत आदि विविध कार्यक्रम किये जाते हैं।”

उन्होंने कहा कि श्रावणी उपाकर्म व संस्कृत दिवस और संस्कृत सप्ताह के अवसर पर संस्कृत भाषा के संरक्षण, प्रचार से संबंधित चर्चा, विद्वद्गोष्ठी, संस्कृत में संभाषण, संस्कृत प्रश्नोत्तरी, विविध ग्रंथों पर व्याख्यान, अधिक से अधिक लोगों को संस्कृत के प्रति लगाव हो, संस्कृत को कैरियर के रूप मे अपनाने के प्रति जोर दिया जा रहा है, ताकि बड़ों के साथ पढ़ने वाले बच्चों को संस्कृत की महत्ता, संस्कृत के ग्रंथों की समझ हो सके, लगाव हो सके।

संस्कृत में रोजगार के पर्याप्त अवसर

प्रचार प्रमुख पं.चन्द्रभूषण शुक्ला ने बताया कि “संस्कृतभारती संगठन द्वारा संस्कृत के वैदिक ऋचाओं को पाठ्यक्रम मे शामिल करने के लिए प्रयास कर रहे हैं। जैसे अंग्रेजी भाषा को छोटे बच्चों के स्कूली पाठ्यक्रम मे शामिल किया गया है, वैसे ही संस्कृत के वेद, शास्त्र, गीता एवं संस्कृत साहित्यों को कक्षा एक से बारहवीं तक के शिक्षा मे शामिल किया जाए।

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इसके लिए ऐसा पाठ्यक्रम बनाया जाना चाहिए कि बारहवीं पास करते तक बच्चों को संस्कृत की महत्ता, वेद मे समाहित विज्ञान, गीता में शामिल मैनेजमेंट को और संस्कृत में रोजगार के पर्याप्त अवसर को समझ सके।”