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सीएम भूपेश के फैसले का CPI (M) ने किया विरोध, कहा-स्वास्थ्य क्षेत्र को उद्योग का दर्जा देना “दिवालिया दिमाग की उपज”

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रायपुर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने सरकारी खजाने से अनुदान देकर निजी स्वास्थ्य सेवा को बढ़ावा देने के कांग्रेस सरकार के फैसले का कड़ा विरोध किया है। पार्टी ने चुनावी वादे के अनुसार सरकारी स्वास्थ्य के क्षेत्र को मजबूत करने और सभी नागरिकों को इसे निःशुल्क उपलब्ध कराने की मांग की है।

पार्टी ने कहा है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा देने से सरकारी स्वास्थ्य की बची-खुची विश्वसनीयता और गुणवत्ता भी खत्म हो जाएगी।

गुरुवार को जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कांग्रेस सरकार के इस फैसले को कॉर्पोरेटपरस्त फैसला बताया है और कहा है कि अनुभव के आधार पर इस फैसले को पलटा जाना चाहिए। हमारा अनुभव यह बताता है कि इससे पहले भी निजी क्षेत्र को बेशकीमती जमीन सहित कई प्रकार की रियायतें सरकार द्वारा दी गई, लेकिन संकट के समय भी गरीबों को कोई सही चिकित्सा सुविधा नहीं मिली और निजी अस्पताल केवल मुनाफा बनाने में ही लगे रहे।

माकपा ने कहा कि कोरोना संकट के समय भी इन निजी अस्पतालों ने मरीजों को लूटा है और सरकार के सभी दिशा-निर्देश कागजों तक ही सीमित रह गए। कांग्रेस सरकार को इस अनुभव से सबक लेना चाहिए।

माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि पूरी दुनिया का अनुभव बताता है कि जहां-जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था मजबूत थी, वहां-वहां कोरोना महामारी से निपटने में सफलता मिली है। कोरोना की संभावित तीसरी घातक लहर के मद्देनजर निचले स्तर तक सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को मजबूत करने और पर्याप्त चिकित्साकर्मियों को नियुक्त करने की जरूरत है। इसके साथ ही इस बात को भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि अन्य सभी तरह की बीमारियों का इलाज भी बिना किसी बाधा के हो। स्वास्थ्य सेवा का निजीकरण इसमें कोई मदद नहीं करेगा।

माकपा ने मांग की है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजी अस्पतालों के नियमन के कड़े मापदंड लागू किये जायें तथा मरीजों से लिये जाने वाली फीस का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाए, ताकि मरीजों की अनाप-शनाप लूट पर रोक लगे। सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का कम-से-कम 3% खर्च करें और यह खर्च सरकारी स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने के लिए किया जाए। माकपा नेता ने स्वास्थ्य के क्षेत्र को उद्योग का दर्जा दिए जाने के फैसले को भी ‘दिवालिया दिमाग की उपज’ बताया है और कहा है कि यह अवधारणा एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के पूरी तरह खिलाफ है, जिसका माकपा विरोध करती है।

माकपा नेता ने जन स्वास्थ्य अभियान द्वारा सरकार के इस फैसले के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान-आंदोलन का भी समर्थन किया है।