नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका लगा है। दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने बीजेपी का दामन थाम लिया है। बीजेपी नेता और केंंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई।
ये जितिन प्रसाद वही हैं जिन्हें प्रियंका गांधी का बेहद करीबी नेता माना जाता था और पार्टी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के अगले अभियान में इन्हें बहुत अहम जिम्मेदारी देने जा रही थी। जितिन प्रसाद कांग्रेस पार्टी में राष्ट्रीय सचिव की भूमिका निभा चुके हैं तो यूपीए सरकार में केन्द्रीय मंत्री रह चुके हैं। कांग्रेस ने जितिन प्रसाद को भले ही बहुत कुछ दिया हो, लेकिन आज उन सभी चीजों को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। इसके पहले राहुल के करीबी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी कांग्रेस का हाथ छोड़ कमल का दामन थाम लिया था।
जितिन प्रसाद को बीजेपी में शामिल कराने के बाद केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि यूपी की राजनीति में जितिन प्रसाद की भूमिका अहम होने वाली है। वहीं, जितिन प्रसाद ने कहा कि मैंने 7-8 साल में अनुभव किया कि असल मायने में कोई संस्थागत राजनीतिक दल है, वो भारतीय जनता पार्टी है, बाकी दल तो व्यक्ति विशेष और क्षेत्र के हो गए हैं।
जितिन प्रसाद ने कहा कि जिस चुनौतियों और परिस्थितियों का देश इन दिनों सामना कर रहा है, उससे निपटने के लिए अगर कोई उपयुक्त दल है तो वह है भाजपा और कोई उपयुक्त नेता है तो वह हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। कांग्रेस में मैं अपने लोगों की सेवा नहीं कर पा रहा था, मुझे उम्मीद है कि बीजेपी के माध्यम से मैं लोगों की सेवा कर सकूंगा।
बताया जा रहा है कि कांग्रेस के बड़े ब्राहम्ण चेहरों में से एक जितिन प्रसाद पिछले कई दिनों से पार्टी हाईकमान से नाराज थे। वह कांग्रेस में तवज्जो न मिलने और यूपी कांग्रेस के कुछ नेताओं से अपनी नाराजगी जाहिर भी कर चुके हैं। जितिन प्रसाद की शिकायत को पार्टी हाईकमान ने नजरअंदाज किया। यही वजह है कि उन्होंने आज बीजेपी का दामन थाम लिया।
जितिन प्रसाद के पिता जितेन्द्र प्रसाद भी कांग्रेस के दिग्गज नेता हुआ करते थे। इंदिरा गांधी के समय से पार्टी में काम करते हुए उनके पिता जितेन्द्र प्रसाद ने कांग्रेस पार्टी के एक वफादार नेता के रूप में काम किया था और पार्टी ने उन्हें बेहद महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियां भी सौंपी थीं। लेकिन उन्होंने भी एक बार कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में सोनिया गांधी को चुनौती दी थी और उनके ख़िलाफ़ चुनाव लड़े थे। बाद में दोनों के बीच समझौता हो गया था और जितेंद्र प्रसाद की मृत्यु के बाद सोनिया गांधी ने जितिन पर पूरा भरोसा किया और उन्हें पार्टी व सरकार में अहम पद भी दिए गए। उत्तर प्रदेश के एक पूर्व सांसद और वरिष्ठ नेता की टिप्पणी है कि जितिन से कांग्रेस को भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ वैसे ही भाजपा को भी कुछ नहीं मिलने वाला है। इस नेता के मुताबिक़ ऐसे अवसरवादियों के कारण ही कांग्रेस उत्तर प्रदेश में कमजोर हुई।
भाजपा को जितिन प्रसाद की जरूरत क्यों
दरअसल, बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश में 14 फीसदी आबादी वाले वोटर ब्राह्मण भाजपा से नाराज हैं। योगी आदित्यनाथ सरकार के कई फैसलों से उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों की भाजपा से नाराजगी बनी हुई है और इस विधानसभा चुनाव में पार्टी से अलग वोट कर सकते हैं। भाजपा अपने इस कोर वोट बैंक को किसी भी हालत में संभालना चाहती है। इधर, कांग्रेस में रहते हुए जितिन प्रसाद ब्राह्मण चेतना मंच नाम से एक संगठन बनाकर ब्राह्मणों की राजनीति करते रहे हैं। वे उत्तर प्रदेश के बड़े ब्राह्मण चेहरे भले न हों, लेकिन शाहजहांपुर, ललितपुर और आसपास के इलाके में उनका आंशिक प्रभाव है और वे वहां भाजपा को लाभ पहुंचा सकते हैं। यही कारण है कि ब्राह्मणों की नाराजगी को कम करने के लिए भाजपा उन्हें अपने साथ लाना चाहती है।