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वट सावित्री : उपवास और पूजन पर शंका, 9 जून को रखे व्रत…ये है वज़ह

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रायपुर। वट सावित्री व्रत को लेकर व्रत करने वाली महिलाओं के मन में शंका बनी हुई है, कि आखिर किस दिन उपवास किया जाए ?
दरअसल कई लोग वटसावित्री के पूजन के लिए 10 जून की तिथि को अनुकूल बता रहे है तो कई 9 जून।

बहरहाल छत्तीसगढ़ में वटसावित्री का उपवास और पूजन 9 जून को किया जाना है। इस सम्बंध में राजधानी रायपुर के प्राचीन महामाया मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला ने कुछ तथ्यात्मक जानकारी साझा की है।

पंडित शुक्ला ने शास्त्रों में दिये गये प्रमाणों के आधार पर इस व्रत को 9 जून बुधवार को ही क्यो मनाना सही है इस पर चर्चा की।

Manoj Shukla
Manoj Shukla

मंदिर के पुजारी व ज्योतिषाचार्य मनोज शुक्ला ने कहा कि “आम जन मानस यही समझते है कि हर तीज त्यौहार व्रत को उदयातिथि में ही मनाया जाता है। अर्थात जिस तिथि में सूर्योदय होता है उसमें व्रत करना चाहिये ? लेकिन ऐसा नही है। जिस समय का जो व्रत होता है उस तिथि की व्याप्ति देखी जाती है, न कि सूर्य की उदय तिथि। हर व्रत का समय काल अलग अलग होता है।

उन्होंने बताया कि व्रत कई प्रकार के होते है। सौरव्रत – सूर्योदय से, चंद्रव्रत – चन्द्र उदय से, प्रदोष कालिक – सूर्यास्त के समय, निशीथ कालिक – मध्य रात्रि में, पर्व कालिक – उत्सव के रूप में वर्ष में 1 बार।तत्तद् व्रतों में व्रत की तिथि का संयोग अपेक्षित है।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि “व्रत पूर्णिमा प्रायः हर बार #चतुर्दशी तिथि में ही आता है लेकिन चंद्रोदय के समय पूर्णिमा रहती है। यह चांद्रव्रत है। चंद्रोदय के समय पूर्णिमा होनी चाहिए। सूर्योदय से इस व्रत का कोई मतलब नहीं।”

ऐसे ही गणेश चतुर्थी व्रत प्रायः हर बार तृतीया तिथि में ही आता है। लेकिन चंद्रोदय के समय चतुर्थी ही रहती है। सूर्योदय से इस व्रत का कोई मतलब नहीं है।

उसी तरह प्रदोष व्रत प्रायः हर बार द्वादशी तिथि में ही आता है लेकिन प्रदोष(सांयकाल) में त्रयोदशी ही रहती है। सूर्योदय से इस व्रत का कोई मतलब नहीं है।उसी तरह – एकादशी व्रत सूर्योदय कालिक, शरद पूर्णिमा चंद्रोदय कालिक, रामनवमी मध्याह्न व्यापिनी, जन्माष्टमी आधी रात की अष्टमी, सूर्य सप्तमी सूर्योदय कालिक, श्री अनन्त व्रत में भी मध्याह्न व्यापिनी, महाशिवरात्रि पूजा निशीथ काल में, दीपावली में माहकाली पूजन निशीथ कालिक आदि आदि।

स्थानीय पंचाग का होता है महत्व

पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि इसके अलावा अलग अलग राज्यों या क्षेत्रों से प्रकाशित होने वाले पंचांगों के कारण भी व्रत त्यौहार 2 दिन होते है। इसका कारण है अक्षांश रेखांश देशांतर बेलान्तर व सूर्य चन्द्र के उदय अस्त समय मे अंतर।
इसलिये आप जहाँ के निवासी हैं, उस क्षेत्र या स्थान से प्रकाशित पंचांग का अनुसरण ही करना चाहिये। तो किसी भी तरह की शंका कभी नही होगी।

वटसावित्री पूजन 9 जून को…

वटसावित्री व्रत के बारे में निर्णयामृत व भविष्य पुराण आदि धर्मशास्त्रों ने 3 दिन तक व्रत
( अर्थात ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी , चतुर्दशी व अमावस्या ) करने का विधान बताया गया है।
लेकिन लोकाचार के अनुसार छत्तीसगढ़ सहित हमारे देश के अधिकतर भागों में ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को ही इस व्रत को करने की परम्परा है।

इस व्रत में यदि अमावस्या दो दिन हो अर्थात प्रथम दिन यदि सूर्योदय के उपरांत 18 घटी से पूर्व अमावस्या लग जाए तो चतुर्दशी तिथि से विद्ध अर्थात चतुर्दशी युक्त अमावस्या में ही व्रत व संबंधित पूजन करना शास्त्रसम्मत है। ऐसा निर्णय सिंधु में वर्णित है।
पंडित शुक्ला ने बताया कि श्री काशी विश्वनाथ पंचांग , श्रीदेव पंचांग तथा धर्मसिन्धु आदि के अनुसार यह व्रत 9 जून बुधवार को है। तथा 10 जून गुरुवार को स्नान दान व श्राध्द अमावस्या तथा शनिदेव की जयंती है ,
इस दिन लगने वाला ग्रहण भारत देश मे अदृश्य है इसलिए मान्य नही है।