नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सेवा से बाहर किए गए भारत के विमानवाहक पोत `विराट` के संरक्षण और इसे संग्रहालय में तब्दील करने का अनुरोध करने वाली एक निजी कंपनी की याचिका को सोमवार को खारिज कर दिया। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने इस तथ्य पर गौर किया कि रक्षा मंत्रालय ने सेवा से बाहर किए गए विमानवाहक पोत के संरक्षण संबंधी निजी कंपनी एन्वीटेक मरीन कंसल्टेंट्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रतिवेदन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।
पीठ ने कहा, `आप यह नहीं कर सकते हैं। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने आपको सरकार के समक्ष प्रतिवेदन देने को कहा। आपने वह किया। सरकार (रक्षा मंत्रालय) ने इसे खारिज कर दिया। आपको इसको चुनौती नहीं देनी चाहिए।` वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से चली कार्यवाही में, एन्वीटेक मरीन कंसल्टेंट प्राइवेट लिमिटेड की प्रतिनिधि रुपाली शर्मा ने दलील दी कि विमानवाहक पोत विराट एक राष्ट्रीय खजाना है और इसे संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है। हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने शर्मा की दलीलों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
पोत के खरीदार श्री राम ग्रुप की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा, `उन्होंने (मरीन कंसल्टेंट्स ने) रक्षा मंत्रालय का रुख किया। मंत्रालय ने ना कह दिया। मामला यहीं समाप्त होता है। याचिका का निस्तारण किया जाए।` उल्लेखनीय है कि सेंटॉर श्रेणी के विमानवाहक पोत, आईएनएस विराट ने मार्च 2017 में सेवा से बाहर किए जाने से पहले 29 साल तक भारतीय नौसेना में सेवा दी थी। `आईएनएस विराट` पिछले साल सितंबर में मुंबई से गुजरात के अलंग पोत तोड़फोड़ यार्ड में पहुंचा था और उसके तोड़ने की प्रक्रिया जारी है।
पीठ ने `विराट` को तोड़ने की स्थिति रिपोर्ट पर गौर करने के बाद निजी कंपनी से पूछा था कि जब युद्धपोत की वैध खरीद के बाद उसका 40 फीसदी हिस्सा तोड़ा जा चुका है, तब वह उसे संग्रहालय बनाने के लिए क्यों लेना चाहते हैं। इसपर कंपनी की प्रतिनिधि ने कहा था कि वह तोड़फोड़ की स्थिति का निरीक्षण करना चाहती हैं और कहा था कि दुनिया भर में ऐसे युद्धपोतों को संरक्षित रखा जाता है।