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प्राइवेट अस्पतालों के एक हजार करोड़ अटके, फ्री इलाज बंद करने की तैयारी

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रायपुर। राजधानी सहित राज्यभर के प्राइवेट अस्पतालों में आयुष्मान से फ्री इलाज का सिस्टम गड़बड़ा लगाने लगा है। निजी अस्पतालों के एक हजार करोड़ का भुगतान नहीं हुआ है। पिछले साल जुलाई से ही अस्पतालों को फ्री इलाज के पैसे नहीं मिल रहे हैं। इस साल मई में केवल एक महीने ही नियमित भुगतान किया गया। उसके बाद से फिर पैसे नहीं दिए जा रहे हैं।

अस्पतालों का बकाया एक हजार करोड़ पहुंच गया है। इससे मंझोले और छोटे अस्पतालों के सामने संकट खड़ा हो गया है। कई अस्पताल फ्री इलाज बंद करने की तैयारी में है। शनिवार को निजी अस्पताल और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री विष्णदेव साय से मिलकर उनके सामने अपनी समस्या रखी।

डाक्टरों का प्रतिनिधि मंडल इसके पहले तीन बार स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल से मिलकर अपनी परेशानी बता चुका है। स्वास्थ्य मंत्री ने स्वास्थ्य विभाग के अफसरों को इस समस्या का हल करने के निर्देश भी दिए लेकिन फायदा नहीं हुआ। उसके बाद ही डाक्टरों के प्रतिनिधि मंडल ने सीधे मुख्यमंत्री से मुलाकात की। डाक्टरों का कहना है कि छोटे और मंझोले अस्पताल लोन की किश्त नहीं अदा कर पा रहे हैं। बैंक की ओर से उन पर दबाव डाला जा रहा है। वे मरीजों का सरकारी स्कीम के तहत इलाज कर रहे हैं।

इलाज के एवज में ही वे पैसे मांग रहे हैं। इसके बाद भी उनका भुगतान अटका दिया गया है। इसी वजह से कई डाक्टरों ने फ्री इलाज बंद करने की तैयारी कर ली है। डाक्टरों का कहना है कि जल्द ही भुगतान शुरू नहीं किया गया तो वे इलाज नहीं कर करेंगे।

केवल सरकारी अस्पतालों को ही भुगतान

पड़ताल के दौरान पता चला है कि स्वास्थ्य विभाग और स्टेट नोडल एजेंसी के द्वारा केवल सरकारी अस्पतालों को ही आयुष्मान के इलाज का भुगतान किया जा रहा है। हालांकि शासन स्तर पर पहले ये निर्देश दिए गए थे कि सरकारी और प्राइवेट दोनों अस्पतालों को साठ-चालीस के अनुमात में भुगतान किया जाए। उसी हिसाब से केवल मई महीने में ही भुगतान किया गया। उसके बाद अचानक प्राइवेट अस्पतालों का पेमेंट अटका दिया गया। इसी वजह से बकाया रकम एक हजार करोड़ से ज्यादा पहुंच गई है।

5 लाख क्लेम का पैसा नहीं मिला

राज्यभर के निजी अस्पतालों को 5 लाख मरीजों के इलाज का पैसा नहीं मिला है। इसमें डायलिसिस और बड़े ऑपरेशन का क्लेम भी शामिल है। पिछले साल जुलाई में विधानसभा चुनाव की हलचल शुरू होने की वजह से क्लेम रोक दिया गया था। उसके बाद आचार संहिता का हवाला देकर भुगतान नहीं दिया गया। चुनाव के बाद सरकार बदलने की वजह से तीन-चार महीने कुछ नहीं हुआ। इस दौरान स्थिति ये हो गई कि कई अस्पतालों में इलाज बंद कर दिया। यहां तक कि डायलिसिस जैसी जरूरी सेवा भी बंद कर दी गई थी। उच्च स्तर पर शिकायत के बाद भुगतान किया गया, लेकिन एक महीने में ही बंद कर दिया गया था।