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बीमार हुए भगवान : ज़्यादा स्नान से बिगड़ी जगन्नाथ जी की तबियत…15 दिन करेंगे आराम

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पुरी। आज स्नान पूर्णिमा पर ओडिशा स्थित पुरी महाप्रभु जगन्नाथ का स्नान का कार्यक्रम पुरे पौराणिक मान्यताओं के साथ संपन्न हुआ। श्रीमंदिर से बाहर बनाए गए स्नान मंडप में महाप्रभु जगन्नाथ, भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा को लाया गया।

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जेष्ठ पूर्णिमा को देवस्नान पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, ये भी किवदंती है कि “इसी दिन महाप्रभु जगन्नाथ का जन्म हुआ था।” इसीलिए महाप्रभु, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा श्रीमंदिर में भक्तों के सामने स्नान करते हैं। यह साल में एक बार ही होता है।

देवस्नान पूर्णिमा में भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा के साथ श्रीमंदिर के बाहर स्नान मंडप में वैदिक परंपरा और मंत्रोचार के साथ 108 मटकी जल से उन्हें स्नान कराया गया। ऐसा माना जाता है कि भगवान भक्तों को दर्शन देते हुए अधिक स्नान कर लेते है जिसकी वज़ह से उन्हें बुखार आ जाता है। बुखार की वज़ह से महप्रभु अगले 15 दिन किसी को दर्शन नहीं देते हैं। रथ यात्रा से दो दिन पहले गर्भगृह भक्तों के लिए खुल जाता है।

प्रभु की छवि को स्नान कराने की परंपरा

मंदिर के पूजा विधान के वरिष्ठ सेवक डॉ. मोहंती बताते हैं कि सालभर भगवान को गर्भगृह में ही स्नान कराते हैं, लेकिन प्रक्रिया अलग है। इसमें मूर्ति के सामने बड़े आईने रखते हैं, फिर आईनों पर दिख रही भगवान की छवि पर धीरे-धीरे जल डाला जाता है। लेकिन, देवस्नान पूर्णिमा के लिए मंदिर प्रांगण में मंच तैयार होता है।

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तीन बड़ी चौकियों पर भगवानों को विराजित करते हैं। भगवान पर कई तरह के सूती वस्त्र लपेटते हैं, ताकि उनकी काष्ठ काया पानी से बची रहे। फिर महाप्रभु को 35, बलभद्र जी को 33, सुभद्राजी को 22 मटकी जल से नहलाते हैं। शेष 18 मटकी सुदर्शन जी पर चढ़ाई जाती हैं।