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“रंग संस्कार महोत्सव” का हुआ समापन, नाटक “मी अहिल्या बोलतेय” का हुआ मंचन

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रायपुर। रविवार को रंग संस्कार महोत्सव के नाट्‍य लेखन और निर्देशन कार्यशाला का अंतिम दिन रहा, कार्यशाला के पश्चात समापन समारोह हुआ, जिसमें अखिल भारतीय नाट्‍य विधा संयोजक प्रमोद पवार, अनिल जोशी, रिखी क्षत्रिय, योगेश अग्रवाल, योगेंद्र चौबे, पुरुषोत्तम चंद्राकर, हेमंत सगदेव आदि उपस्थित रहे।

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नटराज पूजन और स्व. अशोक चंद्राकर के छायाचित्र पर पुष्प अर्पण करने के साथ प्रारंभ हुआ तीसरे दिन के कार्यक्रम की शुरुआत हुई। रंग संस्कार महोत्सव के तीसरे दिन की पहली प्रस्तुति भारतेन्दु हरिश्चंद्र द्वारा रचित “अंधेर नगरी चौपट राजा” था जिसे अर्पिता बेड़ेकर ने निर्देशित किया।

देखो देखो रे ये नाटक, देखो देखो रे ये नाटक…गीत संगीत के साथ शुरू हुआ नाटक की कहानी से सब चिर परिचित है राजा के राज्य में सभी वस्तुएँ “तके सेर” मिलती है, गुरु नारायण दास और शिष्य गोवर्धन दास गांव में भिक्षाटन के जाते है, शिष्य बतलाता है कि यहां तो सब तके सेर मिलता है, गुरु कहते हैं कि ऐसे देश में नहीं रहना चाहिए जहां सब कुछ तके सेर मिलता हो और गुरु गांव छोड़कर चले जाते हैं।

कल्लू बनिये की दीवार गिरने से बकरी मर जाती है, जिसकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता है पर बकरी मरी है तो सजा तो होगी। शिष्य गोवर्धन दास को पकड़ लिया जाता है और फांसी की सजा सुनाई जाती है। बेचारा शिष्य कष्ट होने पर गुरु के पास जाता है और गुरु उपाय बताते है कि यह ऐसा समय है जब किसी को फांसी दी जाएगी वो सीधे स्वर्ग जाएगा, तो राजा कहता है कि राजा के रहते हुए स्वर्ग कोन जा सकता है, राजा को फांसी दे दी जाती है।

रंग रंगीली वेश भूष और संगीतमय प्रस्तुति रही अंधेर नगरी चौपट राजा की जिसमें बाल कलाकारों ने सधे हुए अभिनय के साथ नाटक प्रस्तुति किया। यह नाटक भी रंग संस्कार शिविर के सत्रह दिवसीय कार्यशाला में तैयार किया गया था। इस नाटक में ख्याति यादव, केयूर यादव, आद्य सिंह, वंदना यादव, दीप्ति ठाकुर, दीक्षा ठाकुर आदि बाल अभिनेताओं ने अभिनय किया।

दूसरी प्रस्तुति रही सत्यनारायण राऊ द्वारा लिखित नाटक “मी अहिल्या बोलतेय” जिसका निर्देशन त्रिलोचन सोना ने किया। मूल नाटक कन्नड में है जिसका हिन्दी अनुवाद विद्या राव ने किया है। यह नाटक अहिल्या बाई होल्कर पर आधारित है जिसमें अहिल्या बाई के क्रांतिकारी विचारों, सामाजिक परिवर्तन की बात करता है,

उस समय के समाज में सती प्रथा का प्रचलन था जिसे अहिल्या बाई ने बंद कराया। अपने राज्य की सत्ता अपने हाथ मे लेकर राज किया। इस नाटक में धारा सोना, अलका दुबे, शिवा, मनीषा साहू, प्रियांशु शर्मा, सत्यम, आनंद सिंह आदि ने अभिनय किया।

रंग संस्कार महोत्सव के अंतर्गत इन तीन दिनों में नाट्‍य लेखन और निर्देशन कार्यशाला, रंग संस्कार शिविर और नाट्‍य महोत्सव का आयोजन किया गया था जिसमें सात नाटकों की प्रस्तुतियां हुई, सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। सभी नाट्‍य प्रस्तुतियां महाराष्ट्र मंडल के संत ज्ञानेश्वर सभागार में हुई।

रंग संस्कार महोत्सव के अंतिम दिन दो नाट्‍य प्रस्तुतियों के पश्चात समापन समरोह हुआ जिसमें राजीव श्रीवास्तव, सेवा निवृत्त IPS, प्रो. अनिल कालेले, योगेश अग्रवाल, योगेंद्र चौबे के कर कमलों से सभी सात नाट्‍य निर्देशकों को स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया। किशोर वैभव, इंद्र धनु, अंशु प्रजापति, आर्यन सारस्वत, अर्जुन दास माणिकपूरी, अर्पिता बेड़ेकर और त्रिलोचन सोना।

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संस्कार भारती के द्वारा रंग संस्कार महोत्सव का आयोजन स्व. अशोक चंद्राकर की स्मृति में किया गाय, चंद्राकर छत्तीसगढ़ के ख्याति लब्ध कलाकार थे। समापन समारोह पर मध्य प्रांत प्रमुख अनिल जोशी, योगेश अग्रवाल, राजेश श्रीवास्तव ने अपने उद्गार प्रकट किए।