रायपुर। नवरात्रि में चौथे दिन माँ दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। माँ कुष्मांडा को अष्टभुजा भी कहा जाता है। माता कुष्मांडा के हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। माता ने अपने एक हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला धारण की है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां कुष्मांडा को कुम्हड़े की बलि अति प्रिय है और संस्कृत में कुम्हड़े को कूष्माण्ड कहते हैं। इसीलिए मां दुर्गा के इस स्वरुप को कूष्माण्डा कहा जाता है। स्वामी राजेश्वरानंद ने बताया कि माता कुष्मांडा की आराधना से निरोगी काया मिलती है।
ऐसे करें माँ कुष्मांडा की पूजा
स्वामी राजेश्वरानंद ने बताया कि नवरात्रि में चौथे दिन सर्वप्रथम कलश पूजान कर माता कूष्मांडा को नमन करें। पुराणों के अनुसार मां कुष्मांडा को हरा रंग प्रिय है, इसलिए इस दिन पूजा में बैठने के लिए हरे रंग के आसन का प्रयोग करना बेहतर होता है।
मां कूष्मांडा को पुष्प अर्पित कर मां का ध्यान कर के उनसे विनती करे कि, हे माँ कुष्मांडा ! आपके आशीर्वाद से मेरा और मेरे स्वजनों का स्वास्थ्य अच्छा रहे।
देवी को पूरे मन से फूल, धूप, गंध, भोग चढ़ाएं। पूजा के बाद मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं। इसके बाद प्रसाद को किसी ब्राह्मण को दान करें।
ये है माँ कुष्मांडा का मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।