अंबिकापुर। अंबिकापुर के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एमसीएच) में अब हड्डी के जोड़ों का प्रत्यारोपण हो सकेगा। यह ऑपरेशन अस्पताल में पहले संभव नहीं था। निजी खर्च (AMBIKAPUR NEWS) पर करीब दो साल पहले 2019 में अस्थि रोग विभाग ने एक दो मरीजों के जोड़ प्रत्यारोपण किए थे।
भैयाजी ये भी देखें : लिव-इन में रह रही प्रेग्नेंट युवती की मौत, CIMS में शव छोड़ भागा युवक
निशुल्क इलाज नहीं मिलने इससे जुड़े ज्यादातर मरीज पर बाहर चले जाते थे, या फिर प्राइवेट अस्पतालों में उपचार कराते थे। इसमें इंप्लांट ही 50 से 60 हजार रुपए हैं और प्राइवेट में इलाज पर कम से कम डेढ़ से दो लाख रुपए खर्च हो जाते हैं। खास बात यह है कि मेडिकल काॅलेज अस्पताल (AMBIKAPUR NEWS) के अस्थि रोग में इसके तीन विशेषज्ञ डॉक्टर भी पदस्थ हैं। इसके बाद भी जोड़ प्रत्यारोपण के लिए मरीज को बाहर जाने से व्यवस्था पर सवाल खड़ा होता था। सबसे ज्यादा परेशानी गरीब परिवारों को होती थी, लेकिन अब इसकी नौबत नहीं आएगी। अस्पताल में जोड़ प्रत्यारोपण से जुड़े इंप्लांट के लिए सीएम राहत कोष से व्यवस्था कर दी है। इससे मरीज का जोड़ प्रत्यारोपण हो सकेगा।
कूल्हे के प्रत्यारोपण के लिए एक मरीज हुआ भर्ती
सिकलसेल से पीड़ित एक मरीज के कूल्हे की हड्डी का बॉल घिसकर खराब हो गया है। दो दिन पहले ही यह इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचा था। चेकअप के बाद डॉक्टरों ने बॉल प्रत्यारोपण करने भर्ती किया है। इसके सीएम राहत कोष से इंप्लांट उपलब्ध कराने व्यवस्था दी है। एचओडी डॉ. अरुणेश सिंह ने बताया है। मरीज को अभी निगरानी में रखा गया है। एक दो दिन बाद उसका ऑपरेशन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि छोटे इंप्लांट पहले मिलते थे।
बाहर जाने की थी मजबूरी
जोड़ प्रत्यारोपण के लिए अंबिकापुर (AMBIKAPUR NEWS) में भी प्राइवेट में बेहतर व्यवस्था नहीं है। ऐसे में मरीज को यहां से बिलासपुर या रायपुर ही इलाज कराने जाना पड़ता है। इसमें काफी परेशानी होती है। यहां से रायपुर की दूरी करीब चार सौ किमी जबकि रायपुर की तीन सौ किमी है।
इसलिए डॉक्टर नहीं लेते थे इंप्लांट में दिलचस्पी
हड्डी के ऑपरेशन में लगने वाले छोटे इंप्लांट के लिए अस्पताल ने फर्म का चयन कर लिया है। इनकी कीमत ज्यादा नहीं होती इससे आयुष्मान कार्ड से इसका पेमेंट आसानी किया जा सकता है। जोड़ प्रत्यारोपण के इंप्लांट महंगे आते हैं। छोटे इंप्लांट वाले टेंडर में इसकी सप्लाई संभव नहीं है। ऐसे में जोड़ प्रत्यारोपण से संबंधित कोई कोई मरीज आता था, तो उसका निशुल्क ऑपरेशन नहीं हो पाता था। इंप्लांट नहीं होने डॉक्टर भी फिर दिलचस्पी नहीं लेते थे।