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प्राचीन महामाया देवी मंदिर में शुरू हुई होली की तैयारी, हुई बसंत पंचमी की पूजा

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रायपुर। देशभर में बसंत पंचमी का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। एक तरफ जहाँ मथुरा और वृन्दावन में आज से होली की शुरूआत हुई है। वहीं छत्तीसगढ़ में आज के दिन डाड़ गड़ा कर होली की तैयारियों का आरंभ किया जाता है। राजधानी रायपुर के महामाया देवी मंदिर में भी इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन किया गया।

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मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि “माघ शुक्ल पंचमी दिन शनिवार तदनुसार दिनाँक 5 फरवरी 2022 को आज बसन्त पंचमी का पर्व मनाया गया। माँ महामाया देवी मन्दिर परिसर पुरानी बस्ती रायपुर में प्रतिवर्ष की तरह इस दिन आने वाले होली पर्व के लिये “डाड़ गड़ाने” की पूजा मन्दिर के पुजारियों द्वारा मंदिर ट्रस्ट के सदस्यों, कार्यकर्ताओ व श्रद्धालुओं के साथ किया गया। पश्चात होलिका दहन के लिये आज से ही लकड़ी कंडा आदि का संग्रह उसी स्थळ पर आरम्भ किया जायेगा।”

उन्होंने बताया कि “जहाँ होलिका दहन के दिन शुभ मुहूर्त में विधि विधान से पूजन कर प्राचीन परम्परानुसार माँ महामाया के गर्भगृह में कई वर्षो से प्रज्ज्वलित हो रहे अखण्ड ज्योति की अग्नि से होलिका दहन किया जाता है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु गण शामिल होते है। और यहां की अग्नि से ही शहर के कई स्थानों में होलिका दहन किए जाने की पुरानी परंपरा का निर्वाहन आज भी किया जाता है।”

माँ सरस्वती का हुआ था प्राकट्य

पुजारी पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि “शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी या श्री पंचमी नाम से उल्लेखित किया गया है, पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।”
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है।

भगवान विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया।

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जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। माँ सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्राकट्य उत्सव के रूप में भी मनाते हैं।