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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट: मीसाबंदियों की पेंशन पर रोक, 40 से ज्यादा याचिकाओं पर सुनवाई

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बिलासपुर। मीसाबंदियों को पेंशन देने के मामले में राज्य शासन की रिट अपील व मीसाबंदियों की याचिकाओं पर हाई कोर्ट ने आदेश सुरक्षित कर दिया है। पेंशन देने संबंधी कोर्ट (HIGH COART) के आदेश को राज्य शासन ने हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में चुनौती दी है। इसमें पेंशन को प्रविधानों के विपरीत बताया है।

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शासन द्वारा अध्यादेश जारी कर पेंशन निरस्त करने के विरुद्ध मीसाबंदियों ने भी याचिकाएं दायर की हैं। 40 से ज्यादा रिट अपील व याचिकाओं पर सोमवार को एक साथ सुनवाई हुई। मामले में बिलासपुर की जानकी गुलाबानी, रामाधार चंद्रा सीताराम कश्यप की विधवा रूपादेवी सोनी समेत अन्य ने याचिका दायर की थी। इसमें बताया गया कि मीसा अधिनियम के अंतर्गत 25 जून 1975 से 31 मार्च 1977 तक मीसा अधिनियम के प्रविधानों के अंतर्गत जेल में बंद नागरिकों को सम्मान निधि प्रदान की जा रही थी।

सम्मान निधि नियम 2008 के तहत हुई थी

प्रदेश में मीसा बंदियों को पेंशन की शुरुआत रमन सरकार के कार्यकाल में लोकतंत्र सेनानी सम्मान निधि नियम 2008 के तहत हुई थी। मीसा बंदी की मृत्यु पर विधवा को सम्मान निधि की आधी राशि सरकार देती थी। सरकार बदलने पर 28 जनवरी 2019 से राशि बंद हो गई। याचिकाकर्ताओं ने उक्त आदेश को न्यायालय (HIGH COART) में चुनौती देकर इसे लागू किए जाने की याचना की थी। इस दौरान सरकार ने इस नियम को 23 जनवरी 2020 से अधिसूचना जारी कर निरस्त कर दिया था। इससे उक्त दिनांक से पेंशन की पात्रता खत्म हो गई थी। सुनवाई के बाद न्यायालय ने अपने फैसले में माना कि विगत एक दशक तक जिस पेंशन का लाभ याचिकाकर्ताओं को प्राप्त हुआ, उसे अचानक बिना उनकी गलती से बंद किया जाना अन्यायपूर्ण है।

राज्य शासन ने युगलपीठ में चुनौती दी

सरकार ने इस योजना के अंतर्गत पेंशन की पात्रता रखता है या नहीं, इसकी भी कभी जांच नहीं की। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि समस्त याचिका में पेंशन की पात्रता आदेश दिए जाने से लेकर निरसन अधिसूचना की तारीख तक बनती है। इस फैसले को ही राज्य शासन ने युगलपीठ में चुनौती (HIGH COART) दी है। वहीं मीसाबंदियों व उनकी विधवाओं ने पेंशन बंद करने के लिए जारी अधिसूचना व नियमों को चुनौती देने याचिकाएं दायर की हैं।