रायपुर / कृषि कानूनों पर विचार-विमर्श करने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा बनाई गई कमेटी को कॉर्पोरेट प्रायोजित करार देते हुए छत्तीसगढ़ किसान सभा ने कहा है कि देश के किसान समुदाय के पास इन काले कानूनों के खिलाफ देशव्यापी संघर्षों को तेज करने के सिवा और कोई विकल्प नहीं है और इस कमेटी के पास किसान संगठनों के जाने का तो कोई सवाल ही नहीं है।
आज यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि इस कमेटी के सदस्यों की इन काले कानूनों के प्रति और कॉर्पोरेट लॉबी के प्रति प्रतिबद्धता सर्वविदित है और इससे किसानों को किसी प्रकार की निष्पक्षता की आशा नहीं है, जो कृषि और समूची अर्थव्यवस्था के कारपोरेटीकरण के खिलाफ लड़ रहे हैं।
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इस कमेटी का एक भी सदस्य ऐसा नहीं है, जो किसान आंदोलन की चिंताओं से साझा करता हो। इस प्रकार की कमेटी का गठन करके सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं अपनी बची-खुची साख भी गंवा दी है।
उन्होंने कहा है कि इस देश की संप्रभुता जनता में निहित है और इसको चुनौती देने वाली सरकार और उसके कानून को मानने के लिए जनता बाध्य नहीं है। इस कमेटी के गठन का जो स्वरूप है, उससे साफ है कि देशव्यापी किसान आंदोलन को शांत करने के मकसद से सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार के मोहरे की तरह काम कर रही है।
किसान सभा नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में केंद्र सरकार द्वारा आंदोलन में शामिल किसानों को खालिस्तानी आतंकी कहने और विदेशी फंडिंग का आरोप लगाने की भी निंदा की है और कहा है कि वास्तव में तो किसान आंदोलन राष्ट्रविरोधी कॉर्पोरेट ताकतों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है, जिसकी मोदी सरकार पिछलग्गू बनी हुई है।
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इस सरकार के पास 70 से ज्यादा किसानों की मौतों के लिए भी कोई संवेदना नहीं है। ऐसी संवेदनहीन सरकार के खिलाफ किसान विरोधी काले कानूनों की वापसी तक लड़ाई जारी रहेगी और यह लड़ाई दिल्ली में डटे किसानों के साथ ही पूरे देश में लड़ी जाएगी।
किसान सभा नेताओं ने बताया कि किसान संघर्ष समन्वय समिति के देशव्यापी आह्वान पर 13-14 जनवरी को पूरे छत्तीसगढ़ में संकल्प सभाएं आयोजित की जाएंगी और पूरे प्रदेश में संघर्ष तेज करने का संकल्प लिया जाएगा और सरकार (Supreme Court) के पुतले और काले कानूनों की प्रतियां जलाई जाएंगी।